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फिर मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है

 

(सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की कविता से प्रेरित) 
 
यदि मेरे मन के
एक कमरे में आग लगी हो
और उसमें जल रहे हो, 
किसी के प्रति
ईर्ष्या, द्वेष के भाव
तो मैं यह आग जलने दूँगा। 
 
यदि मेरे मन के
एक कमरे में सड़ रही हो
उन लोगों की लाशें, 
जिन्होंने इस धरती को बना दिया
स्वर्ग से नर्क
तो मैं उन लोगों को
सड़ने दूँगा। 
 
यदि मेरे मन के
एक कमरे में निष्क्रिय हो रहे हो
बारूद के ढेर, 
परमाणु बमों में प्रयोग होने वाले 
रेडियोधर्मी पदार्थ
तो मैं इन पदार्थों को
निष्क्रिय होने दूँगा। 
 
यदि मेरे मन के
एक कमरे में जंग खा रही हो
लोहे की रॉड, 
जिसका प्रयोग होगा
तलवारें और पिस्टल बनाने में
तो मैं उस रॉड पर
थोड़ा और पानी डालकर
जंग लगने दूँगा। 
 
यदि मेरे मन के
एक कमरे में 
चूहे कुतर रहे हों
उन काग़ज़ों को, 
जिस पर निर्धारित होगा
ग़रीबों के लहू को बेचकर
अमीरों का भाग्य तय
तो मैं उन चूहों को नहीं रोकूँगा
इन काग़ज़ों को कुतरने से। 
 
यदि तुम भी 
ऐसा ही सोचते हो
इन सभी कामों को लेकर—
 
तो फिर मुझे तुम से
बहुत कुछ कहना है। 

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