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दक्षिण दिशा से उठे बादल

 

यह हम क्या देख रहे हैं
क्षितिज से बादल धीरे-धीरे 
ऊपर चढ़ रहे हैं। 
 
किसान—
हड्डियों का एक ढाँचा लिए 
माथे पर हाथ रखकर
एक दूसरे से कह रहे हैं
बादलों में भार बहुत ज़्यादा है
इनका धीरे-धीरे ऊपर चढ़ना 
संकेत है बारिश का। 
 
दक्षिण दिशा से उठने वाले बादल महशूर हैं
गाँव-देहात में 
कि ये जम कर बरसते हैं
कभी नहीं लौटते 
ये ख़ाली हाथ। 
अधिकतर किसानों ने जोड़ लिया है बैलगाड़ियों को
अपने-अपने मुहानों को खोलने के लिए
उठा लिए फावड़े
बच्चों ने भी उतार दिये हैं
पहने हैं जो एकाध फटे-पुराने कपड़े। 
 
सूदख़ोर-
कल्फ़ के सफ़ेद खादी के कपड़े पहने हुए
बैठा है
मंदिर में खड़े एक विशाल पीपल के नीचे
और घंटियाँ बजाते हुए कर रहा है, प्रार्थना
ईश्वर से। 
 
किसका भाग्य तेज़ है
कौन है अभागा? 
इसका निर्णय करेंगे
ये बादल
जो उठे थे थोड़ी देर पहले
खरखड़ी के ऊपर से; 
किसकी प्रार्थनाओं का पलड़ा भारी होगा
फावड़े लिए किसान लौटेंगे
चेहरे पर ख़ुशियाँ लेकर
या सूदख़ोर की बही में चढ़ेगा
सूद का अतिरिक्त भार। 
 
मौसम सुबह से गर्माया हुआ है
हवा, सुबह से गुम है
नभ में चीलों और कव्वों की उड़ान अनवरत जारी है। 
बाबा भीम, ताऊ श्रीपाल की ओर इशारा करते हुए—
कभी श्रीपाल के जन्म वाले साल हुई थी
ऐसी बारिश
नभ में चढ़े थे ऐसे ही बादल 
खरखड़ी के ऊपर से, 
यमुना का पानी
घिटौरा से होते हुए आ गया था
गाँव के जोहड़ तक। 
 
पेड़—
शिथिल पड़ी पेड़ों की पत्तियों में
थोड़ी-थोड़ी सुगबुगाहट सी होने लगी है, 
पछुआ हवा 
ठंडी पड़ रही है
यह हृदयगति बढ़ने की प्रक्रिया ही है। 
 
बादल—
आसमान में चढ़ते ही
क्या हो गया है यह? 
इन बादलों को
ये पकड़ रहे है
तेज़ रफ़्तार
जैसे इनको मिल गया हो
कोई हाई-स्पीड एक्स्प्रेस-वे
दक्षिणी दिशा से चढ़ने वाले बादल
क्यों उतर रहे है
उत्तरी दिशा में। 
 
गाँव में फिर से
सन्नाटा सा पसर रहा है। 

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