मोक्ष और प्रेम
काव्य साहित्य | कविता कपिल कुमार15 Jun 2023 (अंक: 231, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मैंने हमेशा मोक्ष की कामना की
इससे अनभिज्ञ होते हुए भी
कि मोक्ष क्या होता है?
लोगों से सुना था
और किताबों में पढ़ा था
मोक्ष का अर्थ होता है—
जीवन-मरण के आवागमन से मुक्ति;
मैं मोक्ष प्राप्ति के लिए बैठ गया
वटवृक्ष के नीचे
बुद्ध सा ध्यान लगाकर
फिर मुझको अचानक याद आया
तुम्हारा प्रेम
जिसमें मैंने तुम्हारे साथ
सात जन्मों तक
साथ रहने का प्रण लिया था
अब, मैं द्वंद्व की स्थिति में हूँ
मोक्ष प्राप्त करूँ
या तुम्हारा प्रेम,
मैं बुद्ध की तरह (यशोधरा को)
तुम्हें अकेला छोड़कर
मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंकुर
- अनन्त-प्रेम
- अस्तित्व
- इस दुनिया को इतना छला गया है
- उत्तर-निरुत्तर
- कविता और क्रांति
- क्योंकि, नाम भी डूबता है
- गाँव के पुराने दिन
- गाँव के बाद
- गाँव में एक अलग दुनिया
- चलो चलें उस पार, प्रेयसी
- जंगल
- दक्षिण दिशा से उठे बादल
- देह से लिपटे दुःख
- नदियाँ भी क्रांति करती हैं
- पहले और अब
- प्रतिज्ञा-पत्र की खोज
- प्रेम– कविताएँ: 01-03
- प्रेम– कविताएँ: 04-05
- प्रेम–कविताएँ: 06-07
- प्रेयसी! मेरा हाथ पकड़ो
- फिर मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है
- बसंत और तुम
- भट्टों पर
- भूख
- भूखे पेट
- मनुष्य की अर्हता
- मरीना बीच
- मोक्ष और प्रेम
- युद्ध और शान्ति
- रात और मेरा सूनापन
- रातें
- लगातार
- शहर – दो कविताएँ
- शान्ति-प्रस्ताव
- शापित नगर
- शिक्षकों पर लात-घूँसे
- सूनापन
- स्त्रियाँ और मोक्ष
- स्वप्न में रोटी
- हिंडन नदी पार करते हुए
- ज़िन्दगी की खिड़की से
कविता - हाइकु
लघुकथा
कविता-ताँका
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं