लगातार
काव्य साहित्य | कविता कपिल कुमार15 Nov 2023 (अंक: 241, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
लगातार बढ़ते रहो!
बढ़ना उस दिशा में
जहाँ, मनुष्य के रूप में
कोई निर्दयी पशु
घात लगाए
ना बैठा हो।
लगातार चढ़ते रहो!
चढ़ना उस पहाड़ पर
जिसका पत्थर
नाज़ुक हो
मनुष्य के हृदय से।
लगातार गढ़ते रहो!
गढ़ना ऐसे स्वप्न
जो कभी भी ना पहुँचाए
किसी को ठेस या दुःख।
लगातार लड़ते रहो!
ईर्ष्या के विरुद्ध
झूठ के विरुद्ध
अंततः एक शब्द में
बुराई के विरुद्ध।
लगातार बढ़ते रहो!
लगातार चढ़ते रहो!
लगातार गढ़ते रहो!
लगातार लड़ते रहो!
सकारात्मक दिशा में।
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