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अनन्त-प्रेम

लिख सकता हूँ
मैं भी
तुम्हारे अंग-अंग को 
अन्य वस्तुओं के जैसा–
कर सकता हूँ
मैं भी
उपमा अलंकार का अनुप्रयोग–
दे सकता हूँ 
मैं भी
तुमको नई-नई उपमाएँ–
कर सकता हूँ
मैं भी
सामान्य लोक सीमाओं का उल्लंघन
अर्थात् अतिश्योक्ति अलंकार प्रयोग–
सुझा सकता हूँ 
मैं भी
तुम्हारे भिन्न-भिन्न नाम
लिख सकता हूँ
मैं भी
तुम पर असंख्य दोहे–
गुनगुना सकता हूँ 
मैं भी
तुम्हारे लिए प्रेम-गीत–
ला सकता हूँ
“मैं” भी
तुम्हारे लिए चाँद-तारे तोड़कर–
बनवा सकता हूँ
मैं भी
तुम्हारे लिए पत्थर के ताजमहल
दिखा सकता हूँ
मैं भी
तुम्हें अकल्पनीय स्वप्न–
किन्तु, मुझे डर लगता है 
कई पीढ़ियों के बाद 
मेरे अर्थों का अनर्थ न हो जाएँ–
इसीलिए मैं तुमको
“सर्वश्रेष्ठ स्त्री” लिखकर
अनन्त प्रेम दूँगा। 
 
क्योंकि सदैव
गणित के जैसे–
युगों युगों के बाद भी 
तुम “सर्वश्रेष्ठ स्त्री” रहो 
और मेरा प्रेम-अनन्त! 

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