शापित नगर
काव्य साहित्य | कविता कपिल कुमार1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
शापित हो चुके नगर
विस्थापित हो चुके होंगे
धूमिल हो रहे शहर
अभी-भी ढूँढ़ रहे हैं एक रंग
ऊँची खड़ी ईमारतों के बीच
जिसके मध्य से छँटता है एक सन्नाटा
किसी चिड़िया के गुज़रने से। 
 
पैंतीसवीं मंज़िल से झाँकता हुआ एक सभ्य आदमी
डूबा है किसी खोज में
ई.एम.आई. का डर या
किसी बैंक के क़र्ज़ के बोझ में
उसने इस घर से किया है एक समझौता
समझदारी भरी है इसमें या नहीं
ना ज़मीन अपनी, छत भी पराई। 
 
कई मीलों तक शून्य फैला है
कई मीलों तक सन्नाटा पसरा है
प्रेमी अलग दिशाओं में निकल पड़े हैं
शान्ति खोजने, 
इमारतें बड़ी टिकाऊ हैं
कंक्रीट का कठोर फ़र्श
चमचमाती रंग-बिरंगी लाइटें
किन्तु धूमिल शहर
ईमारतें टिकाऊ हैं सम्बन्ध बड़े कमज़ोर। 
 
शापित कैसे होते हैं नगर? 
धूमिल कैसे होते है शहर? 
क्या धूमिल शहर ही बदलते हैं
शापित नगरों में? 
या किसी की बद्दुआ ही
काफ़ी है किसी शहर को
शापित नगर बनाने में। 
 
शापित नगरों के लोग
विस्थापित होने के बाद—
जिस शहर के बन जाते हैं
बाशिंदे
उन शहरों को भी लगती है
बद्दुआ
या बद्दुआयें सिर्फ़ शापित नगर तक ही ठहरती हैं? 
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