गाँव में एक अलग दुनिया
काव्य साहित्य | कविता कपिल कुमार15 May 2023 (अंक: 229, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
दुनिया के बदल जाने के बाद भी
चार चीज़ें ऐसी हैं
जो यथावत चल रही हैं
मेरे गाँव में
पहला—
दशकों पहले
घिटोरा जाती हुई सड़क पर
यकायक एक
लाश का मिलना
और आज तक भी
उसके भूत का
वहाँ से गुज़रने वाली
साइकिलों पर बैठना,
उन साइकिलों पर बैठकर
उन्हें पीछे खीचना।
दूसरा—
छज्जू के चौराहे पर
रात में नाचती चुड़ैलें,
उन चुड़ैलों के पैर
आज भी उसी
धमक के साथ उठते हैं
जिस धमक के साथ
दादा-परदादा ने सुने थे।
तीसरा—
गुलिया की पुरानी हवेली से
किसी रहस्यमयी
आवाज़ का आना,
ये रहस्यमयी आवाज़ें
ऐसा बताते हैं
उन लोगों की हैं
“जो अकाल मृत्यु मरे थे“
ये आत्माएँ
मोक्ष चाहती है।
चौथा—
श्मशान घाट के पास
टोने-टोटकों का होना,
नई-नई मिठाइयों का मिलना
नींबू को काटकर
उसके ऊपर
लाल सिंदूर का छिड़काव,
हरी चूड़ियों का एक डिब्बा;
बीस वर्ष पहले भी
यही वस्तुयें देखी थीं
और आज भी ये ही
वस्तुयें मिलती हैं।
दुनिया बदल चुकी है
परन्तु यह दुनिया
आज भी
रूढ़िवादी दुनिया बनी हुई है
जादू-टोने के मामले में
पुराने ढर्रे पर ही चल रही है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंकुर
- अनन्त-प्रेम
- अस्तित्व
- इस दुनिया को इतना छला गया है
- उत्तर-निरुत्तर
- कविता और क्रांति
- क्योंकि, नाम भी डूबता है
- गाँव के पुराने दिन
- गाँव के बाद
- गाँव में एक अलग दुनिया
- चलो चलें उस पार, प्रेयसी
- जंगल
- दक्षिण दिशा से उठे बादल
- देह से लिपटे दुःख
- नदियाँ भी क्रांति करती हैं
- पहले और अब
- प्रतिज्ञा-पत्र की खोज
- प्रेम– कविताएँ: 01-03
- प्रेम– कविताएँ: 04-05
- प्रेम–कविताएँ: 06-07
- प्रेयसी! मेरा हाथ पकड़ो
- फिर मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है
- बसंत और तुम
- भट्टों पर
- भूख
- भूखे पेट
- मनुष्य की अर्हता
- मरीना बीच
- मोक्ष और प्रेम
- युद्ध और शान्ति
- रात और मेरा सूनापन
- रातें
- लगातार
- शहर – दो कविताएँ
- शान्ति-प्रस्ताव
- शापित नगर
- शिक्षकों पर लात-घूँसे
- सूनापन
- स्त्रियाँ और मोक्ष
- स्वप्न में रोटी
- हिंडन नदी पार करते हुए
- ज़िन्दगी की खिड़की से
कविता - हाइकु
लघुकथा
कविता-ताँका
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं