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गाँव के बाद

 

गाँव भी
कभी गाँव हुआ करते थे
भूमि-अधिग्रहण से पहले; 
शाम के सात बजते ही
गाँव में सन्नाटा
आले में रखी हुई
डिबिया की कम लौ
जो बताती थी
इस घर में भी डिबिया जलती है। 
 
क्या कुछ शेष बचा है? 
गाँवों में पहले जैसा-
जिन खेतों में दिन के ढलते ही
गीदड़ हूक देते थे
उन खेतों में
मौन खड़ी
जिराफ की गर्दन जैसी
ऊँची-ऊँची इमारतें। 
 
कोई किसी की गर्दन पर
चाकू चला जाये
या किसी को चलती बस में छला जाये
सभी दौड़ते हुए जा रहे हैं
बिना किसी की सहायता किये हुए। 
 
शहर को एक जगह रोकने के लिए चाहिए
अंततः
चीज़ें तीन
सँपेरा, साँप और
एक बीन। 

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टिप्पणियाँ

अरुण कुमार प्रसाद 2023/11/15 10:32 PM

प्रचीन गांव की छवि संजो दिया आपने.

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