खेला होबे
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी दिलीप कुमार15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
पूर्वी भारत से हमारे राम जय बाबू पधारे। मैंने उनको रोसगुल्ला देकर कहा–
"राम राम राम जय बाबू।"
जय राम बाबू चिहुंक उठे, पसीना-पसीना हो उठे और बोले –
"शत्रु से
मैं खुद निबटना जनता हूँ
मित्र से पर,
देव! तुम रक्षा करो"
"कविवर दिनकर ने ये लाइनें तुम्हारे जैसे मित्र–शत्रु के लिये ही कही होंगी। सही बात है जब तुम जैसे शुभचिंतक मित्र हो तो शत्रु की क्या ज़रूरत! ये खेल नहीं खेलो हमसे, रसगुल्ला खिलाओ या ना खिलाओ, लेकिन मेरे नाम के साथ इतने बार राम मत लगाओ, नहीं तो मेरे पीठ की चमड़ी उधेड़ दी जाएगी। मेरे साथ खेला होबे मत करो। मैं अब आरजे के नाम से जाना जाता हूँ और राम-राम नहीं बल्कि नोमोस्कार करके ही दुआ-सलाम करता हूँ।"
उनका फैंसी नाम सुनकर मुझे सुखद अचरज हुआ और उनके नाम के लेकर डर को लेकर थोड़ी हैरानी भी।
मैंने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा –
"घबराइए मत आप राजधानी में हैं, यहाँ ला एण्ड आर्डर बहुत बढ़िया है। वैसे ये खेला होबे क्या है?"
उन्होंने ठंडी साँस लेकर कहा –
"आमतौर पर देश के लोग विराट कोहली जैसे लोग से इंस्पिरेशन लेते हैं जो फ़्रंट से आकर लीड करते हैं और एक अनुकरणीय मिसाल पेश करते हैं। हर समस्या का सबसे पहले ख़ुद सामना करते हैं। लेकिन हमारे उधर थोड़ा दिन धोनी नौकरी क्या कर लिया उधर सब को धोनी स्टाइल का लीडरशिप करना है। मतलब सब लोग खेल लो, मैं लास्ट में सिर्फ़ कप उठाने आऊँगा। और सबसे लास्ट में खेलने का फ़ायदा ये है कि जब सब नहीं खेल पाये तो मैं क्यों खेलूँ?"
"ये धोनी-विराट का क्या मतलब, चुनावों से?"
मैंने जिज्ञासा प्रकट की।
"अभी देखो, विराट सामने से आकर लड़ता है, चुनौती देता है, अब जीते या हारे ये एक बात है, ऐसा एक पार्टी कर रही है। जबकि दूसरी पार्टी धोनी की तरह सौ बहाना लिए बैठी है कि मैं तुम्हारी नेता तो हूँ लेकिन मुझ पर निर्भर रहो, ख़ुद लड़ो – उलझो।
"तुम हारे तो मैं भी हार जाऊँगी, और ये सामूहिक ज़िम्मेदारी होगी और अगर कहीं जीत गए तो इसका क्रेडिट मेरे करिश्माई नेतृत्व को मिलेगा।
"अभी से लड़ने के लिये ये अन्तरे याद कर लो –
’करबो
लरबो
हारबो रे’
"और अगर किसी तिकड़म से जीत गए तो बताना कि हमारी जीत का श्रेय इन लाइनों को जाता है –
’करबो,
लरबो
जीतबो रे’. . ."
वैसे सुना है किंग खान ने सिर्फ़ एंथम दिया है, बाक़ी और कुछ देने से इनकार कर दिया है।
ये दिलचस्प खेल शुरू हो चुका है जिस इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी को एक महत्वपूर्ण चुनाव की कमान सौंपी गई है उसने खेल शुरू होने से पहले ही खेल कर दिया। क्योंकि जिस कम्पनी का मेन स्टाफ़ पूर्वी भारत में एक दल को चुनाव जिताने पर लगा है, उसी कंपनी की सिस्टर कन्सर्न ने विरोधी दल के चुनाव जीतने की भविष्यवाणी कर दी है।
असली खेला तो हो गया, पहले खेला होबे की चुनौती देकर ललकार दिया गया और फिर ख़ुद को घायल की श्रेणी में डाल दिया। अब खेल तो बराबरी के लोगों के बीच ही होता है।
"लेकिन ये खेला शुरू होते ही खिलाड़ी के घायल होने का सीन है, और गोत्र बताने का क्या चक्कर है," मैंने उनसे जानना चाहा।
आरजे बाबू ने गहरी साँस ली और फिर बोले –
"इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी के कर्ता-धर्ता अँग्रेज़ी में बोलते हैं लेकिन हैं ज़मीन से जुड़े इंसान। हमारे देश में बहुत से विरोधाभाष है। वैसे ही जैसे भारत की नयी जेनरेशन और कॉरपोरेट के लोगों को हमारे धार्मिक ग्रन्थों को समझाने वाले एक अँग्रेज़ी-दां लेखक जब इंग्लैंड जाते हैं तब अपने खाने में गाय के ख़ून से बनी हुई डिश को सहर्ष पेश करते हैं। इस बात के बड़े दूरगामी नतीजे हैं। मसलन कुछ बरस पहले भारत में जब पेप्सी में पेस्टिसाइड होने के सन्देह का बहुत हल्ला मचा था और तब शाहरुख खान उसके ब्रांड अम्बेसडर थे; लोगों ने उनसे पेप्सी ब्रांड को प्रोमोट ना करने की अपील की तो शाहरुख खान साहब ने कहा कि अगर भारत में पेप्सी पर प्रतिबंध लग गया तो वो अमेरिका में जाकर पेप्सी पियेंगे। पेप्सी के प्रति उनकी निश्छल कनविक्शन देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गए थे।"
मैंने उनको टोका –
"लेकिन शाहरुख खान की फ़रमाँ-बरदारी आजकल विमल गुटखा के साथ है, जबकि सुना है निजी जीवन में वो गुटखा नहीं खाते।"
आरजे ने मुझे समझाया –
"तुम तो विराट कोहली के टॉस की तरह हो, जो मैच भले जीत जाएँ लेकिन टॉस ज़रूर हारेंगे। अरे भाई, जब हिंदुत्व की सभी क्रिया-कलापों का शत-प्रतिशत पालन करने के बाद कोई लीडर पब्लिक डोमेन में आकर हिन्दू विरोध की मनमानी परिभाषा गढ़ कर व्याख्या कर सकता है तो विमल पान मसाला के लिये अजय देवगन और शाहरुख खान अपनी पुरानी और स्थायी दुश्मनी भुलाकर एक नहीं हो सकते; आख़िर परदेस में इन दोनों को राष्ट्रीयता सिखाने और दिखाने के लिये विमल पान मसाला से बेहतर क्या विकल्प हो सकता है।"
मुझे उनकी बात समीचीन नहीं लगी मैंने कहा –
"इससे कॉमन मैन के जीवन पर क्या फ़र्क़ पड़ता है कि अजय देवगन या शाहरुख खान कौन सा गुटखा खाते हैं?"
आरजे साहब झल्ला उठे –
"फिर सौ करोड़ के कलेक्शन टारगेट की बातों पर कॉमन मैन काहे हल्ला मचा रहा है। तीन सौ की एचएमटी घड़ी भी तो समय बताती थी; वो बंद क्यों हो गयी टैग ह्युरर की डेढ़ लाख की घड़ी कॉमन मैन क्यों ख़रीदता है ईएमआई पर? इसीलिए ना कि शाहरुख खान उसको पहनता है ना। पढ़ाई-लिखाई में हृतिक रोशन काफ़ी हल्के-फुल्के थे, ज़्यादातर समय नृत्य सीखने और उसके अभ्यास में लगाया करते थे, लेकिन अब सभी को बता रहे हैं कि फलां एप्प से पढ़ लो तो गणित ना सिर्फ़ जान जाओगे बल्कि दूसरों को सिखाने भी लगोगे। वे अपने पिता की कम्पनी में पार्टनर थे आजकल हर माता-पिता को एप के गुणगान से अभिवावक से पार्टनर बना रहे हैं। आमिर खान ने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी, अब बेचारे पानी बचाने के तरीक़े सीखने और बताने तुर्की तक जाते हैं। क्या-क्या बताएँ साहब! यही सब तो खेला होबे है," और फिर वो हाथ से ही फ़र्श बजाकर डफली की ताल बैठाकर गाने लगे –
"दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मसल्हत के पले
ऐसे दस्तूर को, सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं जानता, मैं नहीं जानता।"
वो फ़र्श पर डफली बजाते रहे और तरन्नुम में गाते रहे। जब गाना-बजाना ख़त्म हुआ तो मैंने कहा –
"आप तो बहुत अच्छा गाते-बजाते हैं। लेकिन इस सबका कोई फ़ायदा भी है क्या?"
वो झल्ला उठे और बोले –
"अबे जंतर-मंतर इतनी डफ़ली बजाने और गाने का एक हज़ार तक मिल जाता है। मैंने अपनी पत्रकारिता वाली नौकरी छोड़ दी है, अब मैं फ़्री लांस आन्दोलनजीवी हूँ। कभी-कभी तो डेढ़-दो महीने की परफ़ॉर्मेंस का काम एक साथ मिल जाता है। लेख लिखता था तो कोई ना पढ़ता था अब देखो मुझे लोग—फ़ेस ऑफ़ प्रोटेस्ट—कहते हैं, समस्या किसान की हो या नेट न्यूट्रलिटी की, मेरे पास हर विरोध के लिये अलग-अलग गेटअप, गीत और तख़्ती है। कोरोना में मेरी बहुत अच्छी आमदनी हुई। कभी-कभी तो इन सबमें मैं फ़ैमिली को भी ले जाता हूँ। बच्चों के तो प्रोटेस्ट में जाने पर डबल भुगतान मिलते हैं। यही तो है ’खेला होबे’," ये कहकर वो हो-होकर हँसे।
मैं उनकी बात का कुछ जवाब देना चाहता था तब तक मेरा मोबाइल बज उठा; फोन उठाया तो उधर से श्रीमती जी ने दहाड़ते हुए कहा –
"बिजली का बिल जमा किया था?"
"भूल गया, कल जमा कर दूँगा।"
"कल छुट्टी है, बिजली वालों का ऑफ़िस बंद है। आज बिजली वाले आये थे, बिजली काट गए हैं। और ज़रा घड़ी में टाइम देखो क्या बजा है? जाकर बिजली का बिल जमा कर दो, और अगर नहीं जमा होता तो बिजली लेकर ही आना, वरना . . ." ये कहकर उधर से पत्नी ने फोन काट दिया।
मैंने घड़ी देखी, शाम के छह बज चुके थे। बिजली विभाग का ऑफ़िस बंद हो चुका होगा और कल छुट्टी है। हे भगवान! अब मैं बिजली का इंतज़ाम कहाँ से करूँगा?
मैंने आरजे को अभिवादन किया राम-राम कहना चाहता था लेकिन अचानक ध्यान आया और हाथ जोड़ कर निकल पड़ा वे पीछे से मुझे पुकारते रहे।
मैं बिजली का इंतज़ाम कहाँ से कैसे करूँगा?. . . मैं मन ही मन सोच रहा था कि राम जी मेरी रक्षा करें। नहीं-नहीं काली जी, शीतला माता स्त्री शक्ति के कोप से मेरी रक्षा करें वरना ना जाने कौन-सा मेरे साथ "खेला होबे"!
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