लड्डूलाल ‘इन’ ननिहाल
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता दिलीप कुमार1 Aug 2023 (अंक: 234, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
लड्डूलाल पहुँचे गए ननिहाल
रसगुल्ले से फूले हैं इनके गाल,
दाँत सड़ा दिया खा-खा कर चॉकलेट
गोलगप्पे जैसा फूला है भई पेट,
होमवर्क कभी नहीं करते हैं पूरे
इन्हें कहते हैं सब “ओ छोले-भटूरे”,
घर-बाहर ख़ूब मचाते उधम
सबकी नाक में किये रहते दम
हर सामान है इनको पलटना
बिखरा देते घर का कोना-कोना,
सबके कान में हैं सीटी बजाते
कुत्ते-बिल्ली के संग ही नहाते
किसी की न सुनते, करते मनमानी
इनसे पस्त हुईं मौसी और नानी,
लड्डूलाल के गाल हैं प्यारे
इनके गालों पर सभी हैं वारे,
इतनी ज़्यादा ये करते शैतानी
नानी को भी याद दिला दी नानी,
जीने से कूद पड़े लड्डूलाल
फूटा माथा तो हुए बेहाल
मलहम-पट्टी के बाद फिर लगा इंजेक्शन,
सूई चुभी तो दिया चीख के रिएक्शन
बदमाशी की फिर जो छेड़ी तान
मम्मी ने उनके उमेठे कान
चोट लगी तो आई अक़्ल ठिकाने,
लड्डूलाल अब सबका कहना मानें।
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