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कूल बनाये फ़ूल

 

“मुझे सेब के पेड़ के नीचे बैठने का आइडिया माही भाई ने ही दिया था तभी मैं ग्रेविटी की खोज कर पाया”–न्यूटन।

अगले कुछ दिनों में अगर आपको कुछ ऐसा पढ़ने को मिल जाये तो ताज्जुब मत कीजियेगा। धोनी का अंतिम आईपीएल चल रहा है उनका प्रचार तंत्र आगामी दिनों में ये साबित न कर दे कि सर नेपोलियन बोनापार्ट की आल्प्स पर्वत पर की गई विजय माही भाई के विजय अभियान से ही प्रेरित रही होगी।

प्रचार तंत्र तो काम करता ही है मगर क्रिकेट से जुड़े सबसे अमीर क्लबों में से एक ‘चेन्नई सुपर किंग्स’ में किसी न किसी तरह की नौकरी पाने की चाहत, खेल से जुड़े हर व्यक्ति फिर चाहे खेल रहा खिलाड़ी हो, रिटायर्ड खिलाड़ी, कमेंटेटर, कोचिंग स्टाफ़, पीआर से जुड़े लोग, सबको पता है—बाक़ी टीमों में तो आप खेल के ज़रिये जाएँगे लेकिन महेन्द सिंह धोनी की टीम में आप धोनी की तारीफ़ करके ही जायेंगे। सो ये ट्वीट, वीडियो, वक्तव्य आपको आगे रोज़गार दिलाने में मदद करेंगे।

थोड़ा धोनी के योगदान की पड़ताल कर लें भले ही कप जितवाने के बाद वह सिर्फ़ 15 सेकेंड के लिए फोटो खिंचवाने के बाद हट जाते रहे हों बतौर कप्तान लेकिन ये स्थापित व शोधपूर्ण तथ्य रहा है कि धोनी अगर टीम में हैं और कप्तान नहीं हैं तो टीम कोई ट्राफी जीत नहीं सकती। अब पता नहीं ये धोनी की पनौती उपस्थित का प्रभाव रहा होगा या उनकी निष्क्रियता की ‘कूल’ रणनीति।

मुग़ले आज़म फ़िल्म में एक डायलॉग था कि जिसमें अकबर बादशाह अनारकली से कहता है कि “सलीम तुझे मरने नहीं देगा और हम अनारकली तुझे जीने नहीं देंगे।”

कदाचित धोनी ने इस डायलॉग को अपनी क्रिकेट की रणनीति में उतार लिया। कप्तानी से हटने के बाद उनका प्रदर्शन शायद इसी फ़लसफ़े को दर्शाता है कि “मेरा कप्तान रहते ही कप जीता जा सकता है और अगर मैं कप्तान नहीं रहा तो किसी और को कप उठाने नहीं दूँगा।”

आज जो पूर्व क्रिकेटर धोनी की तुलना क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर से कर रहे हैं ज़रा उन कपिल देव और सुनील गावस्कर के टीवी पर इश्तहार तो देख लें ये दोनों लीजेंड खिलाड़ी ‘कमला पसन्द’ और दूसरे पान मसाले बेच रहे हैं, तो जो पैसा लेकर पान मसाला की तारीफ़ें कर रहे हैं, क्या गारंटी है कि ये धोनी की तारीफ़ पैसा लेकर या भविष्य में पैसा पाने की प्रत्याशा में नहीं कर रहे हैं।

“पान मसाला की तारीफ़ें कर के युवाओं के सेहत की डूबा रहे नैय्या

कपिल और गावस्कर के लिए अब फ़र्ज़ से बड़ा हो गया है रुपैया।”

आज जो लोग धोनी की फ़िटनेस, डाइव, जम्प और एक ओवर में तीन छक्कों पर बलि-बलि जा रहे हैं उन्हें क्यों इस बात की पड़ताल नहीं करनी चाहिए कि धोनी आख़िर 2019 में 9 गेंदों में 20-22 रन का लक्ष्य नहीं भेद सके? धोनी अगर इतने ही अच्छे थे इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज़ की उनकी कप्तानी की शर्मनाक हार की चर्चा क्यों नहीं होती? ये वही धोनी हैं जिन्होंने अपने हिसाब से फ़िल्म बनवाई जिसमें सहवाग से अपने निजी झगड़े को अफ़वाह साबित करवा कर, ख़ुद को पाक साफ़ रखा और इतनी ज़िद रखी कि सगे भाई का अस्तित्व ही नकार दिया। नफ़रत इतनी ‘कूल’ होती है कोई बताए मिस्टर कूल को।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आईपीएल में करप्शन की जाँच कर रही समिति के समक्ष चेन्नई सुपर किंग्स के सर्वेसर्वा मयप्पन को धोनी ने साफ़ बचा लिया। उन्होंने जाँच कर रहे आयोग को मय्यपन को महज़ खेल प्रेमी बताया। कौन-सा खेल प्रेमी टीम मीटिंग और ड्रेसिंग रूम में शामिल रहता है? इस सवाल का जवाब अनसुलझा ही रह गया। सीयसके में करप्शन साबित हुआ और ये भी माना गया कि “जेन्टलमेन्स गेम” माने जाने क्रिकेट की क्लब टीम के तौर-तरीक्रे इतने घटिया थे कि उस पर दो साल का बैन लगाना पड़ा।

व्यापारिक यूनिट आम्रपाली ग्रुप से धोनी का जुड़ाव कितना गहरा था ये सब जानते हैं; धोनी उस ग्रुप में ब्रांड एम्बेसडर से कहीं ज़्यादा था। धोनी की छवि और बातों पर भरोसा करके लोगों ने अपने ख़ून-पसीने की कमाई से घर बुक कराया था। लोगों को बहुत वक़्त तक घर नहीं मिला; लोगों को घर नहीं मिला उनके पैसे डूब गए मगर धोनी तक बात पहुँची तो मामला रफा-दफ़ा हो गया। मिस्टर कूल पर भरोसा करके घर के लिए धन देने वालों के सपने धूल में मिल गए। जाने कितनों के सपने धोनी के यक़ीन पर स्वाहा हो गए। मगर धोनी की धन की शक्ति ने इस मामले को मीडिया में ज़्यादा उछलने नहीं दिया। 

अमीरी ने वकीलों की ऐसी फ़ौज खड़ी की धोनी ने कि ज़ी टीवी उन पर हो रहे ख़ुलासों को भी कोर्ट से रुकवाने में सफल रहे। 

मुद्दा सिर्फ़ ये है कि सीयसके में नौकरी पाने के लिए ये जो महानता-महानता का राग अलापा जा रहा है ,जो डेसिबल के शोर ट्वीट हो रहे हैं, वो सब प्रायोजित हैं चीयर लीडर्स की तरह। आख़िर आईपीएल में चीयर्स ही तो होता है कोई लीडर तलाशे नहीं जाते। ये चीयर्स और हल्ला-गुल्ला वाले आईपीएल के लीडर्स जब आईसीसी के टूर्नामेंट में जाते हैं तो घुटनों के बल बैठ जाते हैं। 

हो सकता है मैदान के भीतर धोनी की रणनीति बेहद कारगर हो मगर मैदान के बाहर धोनी की सलाह कितना बड़ा डिसास्टर है, ये हमने पिछले ट्वेंटी-ट्वेंटी विश्व कप में सभी ने देख ही लिया था। जब महेंद्र सिंह धोनी टीम इंडिया के सलाहकार बने थे तब पूरी टीम का मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया था और टीम क्वार्टर फ़ाइनल की रेस तक में नहीं जा पाई थी। विराट कोहली जैसे महानतम खिलाड़ी की बतौर कप्तान अंतिम सीरिज़ में टीम की इतनी बुरी हार और टूर्नामेंट से बाहर हो जाना धोनी की महान सलाह का ही प्रतिफल ज़रूर रहा होगा। 

एक साधारण बैक ग्राउंड से उठकर 2011 के विश्वविजेता टीम के कप्तान बनने वाले धोनी का मैं ख़ुद बहुत बड़ा प्रसंशक हुआ करता था। मगर 2011 के विश्वकप की कामयाबी के बाद शक्तिशाली होने पर धोनी ने जिस तरह टीम में अपने समकक्ष या कप्तानी को ख़तरा बने खिलाड़ियों को ठिकाने लगाया और उनकी तारीफ़ों के पुल न बाँधने वालों को टीम से बाहर का रास्ता दिखाया, ये बातें ऑन रिकार्ड हैं। 2019 के विश्वकप में युवराज की जगह विजय शंकर को चुना जाना इसी की नज़ीर थी भले ही विराट कप्तान रहे हों। 

बेरोज़गारी विदेश में भी है इसीलिये ये तारीफ़ों के ट्वीट हो रहे हैं ताकि सीयसके में बड़ा पैकेज मिल सके। इसलिये अँग्रेज़ों के ट्वीट को बहुत गम्भीरता से मत लें सबको पता है कि अब भारत क्रिकेट से जुड़ा सबसे बड़ा बाज़ार है। सो उसी की ख़ातिर ये सब हो रहा है। 

पहली बात तो ये है कि बात है कि 2024 का आईपीएल चेन्नई सुपर किंग्स नहीं जीतेगी क्योंकि धोनी टीम में तो हैं मगर कप्तान नहीं। शोधकर्ता शोध कर लें धोनी के टीम में रहते हुए और कप्तान न रहने पर न तो क्लब, न स्टेट, न ज़ोन की टीम और न ही नेशनल टीम जीतती है अब ये उनका प्रभाव है या गरिमामयी उपस्थिति ये शोध करके तय कर लें। 

“होनी को अनहोनी कर दे, अनहोनी पर रोनी 
बिना कप्तानी के जीतने न देगा कभी भी ये धोनी।” 

दूसरे फ़िनिशर धोनी आगामी ट्वेंटी ट्वेंटी वर्ल्डकप में टीम इंडिया के कोच या सलाहकार न बनें नहीं तो टीम की योजनाएँ ‘कूल’ होकर फ़िनिश न हो जाएँ। ग़ौरतलब है हमने धोनी के योगदान के बिना 2023 का विश्वकप बहुत ही ज़्यादा अच्छा खेला है। 

और हाँ मित्रों क्लब क्रिकेट का कोई विज़न नहीं होता। यहाँ चीयर्स और चीयर लीडर्स बदलते रहते हैं। 

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