ये बहुत देर से जाना
काव्य साहित्य | कविता दिलीप कुमार1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
ये बहुत देर से जाना
कि प्रेम में लौटना सिर्फ़
लौटना नहीं होता है
बल्कि कहीं न कहीं,
फिर भी रुके रहना होता है।
ये बहुत देर से जाना
कि प्रेम में दौड़ा नहीं जाता
ठहरा भी नहीं जाता है
वास्तव में प्रेम में
कोई गति नहीं होती है।
ये बहुत देर से जाना
कि प्रेम में सिर्फ़ प्रेम
ही नहीं होता है
बल्कि उसमें ईर्ष्या और तृष्णा
के साथ-साथ घृणा भी
शामिल रहती है।
ये बहुत देर से जाना
कि प्रेम में न तो कुछ
जन्मता है और न ही
कुछ मरता है
बल्कि प्रेम तो यथावत रहता है।
ये बहुत देर से जाना
कि प्रेम के बिना
कोई नहीं मरता
और प्रेम में ही कोई
सदैव नहीं जीता
फिर भी प्रेम
जीवन–मरण से परे होता है।
ये बहुत देर से जाना
कि प्रेम में लोग एक-दूसरे को
देखने के लिये तरसते तो हैं
मगर एक-दूसरे को
देख-देखकर ऊब भी जाते हैं।
ये बहुत देर से जाना
कि नफ़रत को पालने के लिये
प्रेम की ज़मीन तैयार की जाती है
वास्तव में, प्रेम नफ़रत के पनपने के लिये
महज़ एक सुविधा है।
ये सब-कुछ बहुत देर से जाना
मगर जानकर भी क्या हासिल
क्योंकि जब ये सब-कुछ
जान गया हूँ तब भी
क्या प्रेम से विरत होकर
रहा जा सकता है।
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