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चल, भाग यहाँ से

“चल, भाग यहाँ से,”  जैसे ही उसने सुना, वो अपनी जगह से थोड़ी दूर खिसक गयी। वहीं से उसने इस बात पर ग़ौर किया कि भंडारा ख़त्म हो चुका था। बचा-खुचा सामान भंडार गृह में रखा जा चुका था। जूठा और छोड़ा हुआ भोजन कुत्तों को और गायों को दिया जा चुका था यानी उसे भोजन मिलने की आख़िरी उम्मीद भी ख़त्म हो चुकी थी। 

उसने कुछ सोचा, अपना जी कड़ा किया और भंडार गृह के दरवाज़े पर पहुँच गई। 

उसे देखते ही अंदर से एक भारी-भरकम आवाज़ फटकारते हुए बोली, “तू यहाँ तक कैसे आ गयी। चल, भाग यहाँ से!” 

वो कातर स्वर में बोली, “अब ना भगाओ मालिक, अब तो सभी लोग खा चुके। कुत्ते और गायों को भी खाना डाल दिया गया है। अब कोई नहीं बचा।” 

भारी भरकम आवाज़, लंबी-चौड़ी, क़द-काठी के साथ बाहर आ गयी और उस जगह का बड़ी बारीक़ी से मुआयना किया। उन्होंने इस बात की तस्दीक कर ली कि वहाँ पर कुत्तों, गायों और उनके विश्वासपात्र इकलौते, बलशाली लठैत के अलावा कोई नहीं था। 

बुलंद आवाज़ ने ज़नाना को भंडार गृह के अंदर बुला लिया। 

तरह-तरह के पकवानों की रंगत और उसकी ख़ुश्बू देखकर वो अपनी सुध-बुध खो बैठी, क्योंकि हफ़्तों हो गए थे उसे दो वक़्त का खाना खाए हुए। 

मालिक ने एक पत्तल में सारे पकवान भर कर जब उसकी तरफ़ बढ़ाया तो पत्तल की तरफ़ झपट पड़ी क्योंकि भूख से उसकी अंतड़ियां ऐंठी जा रही थीं। 

उसके हाथ पत्तल तक पहुँचते इससे पहले मालिक ने उसका हाथ पकड़ लिया और धीरे से कहा, “तेरा पेट तो भर जायेगा, लेकिन मेरा पेट कैसे भरेगा?” 

वो रुआँसे स्वर में बोली, “पहले तुम ही खा लो मालिक। मैं उसके बाद बचा-खुचा या जूठा खा लूँगी।”

“मेरा पेट इस खाने से नहीं भरेगा,” ये कहते हुए मालिक ने उसे अपने अंक में भींच लिया। 

पहले वो सहमी, अचकचाई कि मालिक क्या चाहता है. लेकिन फिर वो समझ ही गयी मालिक की चाहत, क्योंकि यही तो उससे तमाम मर्द चाहते हैं। 

मालिक का प्रस्ताव सुनने के बाद उसने कहा, “इसके बाद तो खाना मिल जायेगा मालिक?”

“हाँ, खाना खाने को भी मिलेगा और ले जाने को भी, तो तैयार है ना तू?” मालिक ने कुटिल मुस्कान से पूछा। 

उसने सर झुका लिया। 

मालिक ने भंडार गृह से बाहर निकलकर अपने लठैत से कहा, “मैं अंदर खाना खा रहा हूँ। इधर किसी को आने मत देना। जब मैं खाकर बाहर आ जाऊँ तब तू भी आकर खा लेना। समझ गया ना पूरी बात।” 

लठैत ये सुनकर निहाल हो गया उसने सहमति में सिर हिलाया। 

मालिक ने अपनी भूख मिटानी शुरू कर दी, उधर वो बेबस ज़नाना सोच रही थी कि मालिक की ख़ुराक पूरी होते ही उसे इतना खाना मिल जायेगा कि और उसकी बूढ़ी-अंधी माँ आज भरपेट भोजन कर सकेगी और आज उसे किसी चौखट पर ये दुत्कार सुनने को नहीं मिलेगी कि “चल, भाग यहाँ से!” 

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