ये दिन जो इतने उदास हैं
काव्य साहित्य | कविता दिलीप कुमार1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
क्यों मिलता कहीं न चैन है
ये पता नहीं दिन या रैन है
ये धूल-धूसरित पथरीले रस्ते
पनियाई आँखों में आँसू हँसते
अब भी जाने किसकी आस है?
ये दिन जो इतने उदास हैं।
कोई हूक सी जो रहती है उठती
कोई पीर आत्मा है क्यों सहती
कोई राह न मिलती इससे नजात की
तुमने कभी न इस पर कोई बात की
क्यों इतना तुम्हें अविश्वास है?
ये दिन जो इतने उदास हैं।
तुमने चुनी आख़िर इक नई राह
कभी वहाँ तक न पहुँचे शायद मेरी आह
मेरा समर्पण भी न ले सका तेरे मन की थाह
अब शायद हो पूरी तुम्हारे मन की चाह
जो भी तुमने चुना क्या वो ख़ास है?
ये दिन जो इतने उदास हैं।
तेरे प्रेम में मैंने सब कुछ खोया,
तुम्हें अंदाज़ा भी है मैं कितना रोया,
ये समय का था कैसा क्रूर छल,
जीने का मेरे न रहा अब कोई संबल
सिर्फ़ वेदना का ही मन में वास है
ये दिन जो इतने उदास हैं।
न जाने कब छँटेगी ये दुख की बदली
अब बची कोई उम्मीद भी अगली
तेरा मोह-नेह कभी क्या मुझसे छूटेगा?
या यूँ ही तपते-दहते जीवन बीतेगा
यही प्रेम का अंतहीन वनवास है
ये दिन जो इतने उदास हैं॥
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