अब कौन सा रंग बचा साथी
काव्य साहित्य | कविता दिलीप कुमार1 Jun 2023 (अंक: 230, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
संबंधों की सब हरियाली सूखी
जीवन हो जैसे इक बलि वेदी
गलना, ढहना, तिल-तिल मरना
जीवन ने चुना मृत्यु का गहना
उम्मीद न रही कोई भी बाक़ी
अब कौन सा रंग बचा साथी
मन मंदिर की मूरत खंडित की
निरपराध भावनाएँ भी दंडित कीं
यूँ रिक्त हुआ मेरा धैर्य अक्षत
बाक़ी न रही अब कोई हसरत
पर तुम क्यों हो इतना विचलित साथी
अब कौन सा रंग बचा साथी
कहते रहते थे क्या-क्या तुम
सर्वस्व निछावर थे सब प्रेम कुसुम
फिर ऐसे कैसे तुम बदल गए
तेरे बदलावों से हम दहल गए
उम्मीद की लौ हर क्षण घटती जाती
अब कौन सा रंग बचा साथी
हाँ, रंग शायद कुछ बचेंगे भी
जीवन में कुछ-न-कुछ रचेंगे भी
जीवन में हो चाहे जितना सन्नाटा
कोई प्रेम बिना नहीं मर जाता
अब साथी के बिना ही रहना साथी
अब कौन सा रंग बचा साथी
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