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राईज़ ऑफ़ पिंक

 

“कल का फ़ीचर किस पर रहेगा मैम?” नुसरत ने योगिता जी से पूछा। 

“कल का फ़ीचर औरतों के गहरे साँवले रंग यानी डार्क कॉम्प्लेक्शन पर रहेगा,” ये कहकर वो फ़ेयरनेस क्रीम अपने चेहरे और गर्दन पर मलने लगीं। कपड़ों के अलावा गर्दन, चेहरा जब उसका दमकने लगा, तब उसने मोबाइल के कैमरे के फ़्रेम में पहले ख़ुद को फिर नुसरत को साथ लेकर देखा। उनके चेहरे पर कई भाव आये आये और गए। उनके चेहरे के भावों को नुसरत पढ़ने की कोशिश करती रही मगर उसे कुछ समझ न आया। 

नुसरत की शंका से बेफ़िक्र अचानक उन्होंने एक सेल्फ़ी ली और फिर तसल्लीबख़्श साँस लेते हुए बोली, “तुम्हारे जितनी गोरी न सही लेकिन दमक तो तुम्हारे जैसी आ ही गयी, है ना नुसरत?” ये कहते हुए उसने नुसरत की तरफ़ देखा। 

“जी मैम, आप तो यूँ ही समाज में एक नायिका की तरह देखी जाती हैं। आपका रंग गोरा नहीं है तो क्या? आप काफ़ी अच्छी दिखती हैं। लोग आपके कॉन्फिडेंस और ग्रैंड पर्सनालिटी के ही क़ायल हैं। आपके फ़ीचर्स भी काफ़ी शार्प हैं, और आपकी रंगत भी साफ़ है,” नुसरत ने उन्हें हौसला देते हुए कहा। 

“रंगत साफ़ है ना, गोरी नहीं, इस देश के मर्द बड़े ख़राब हैं। कितनी भी शार्प फ़ीचर की औरत हो, लेकिन गोरी 
औरत को देखते ही लार टपकाने लगते हैं। अब हम पैदायशी गोरे न सही, लेकिन पैसों के ज़रिये तो गोरे बन सकते हैं,” ऑफ़िस के अलमारी के शीशे में ख़ुद को निहारते हुए योगिता जी बोलीं और अपनी बात की हामी पाने के लिये नुसरत की तरफ़ देखा। 

उनकी सवालिया नज़रों को देखते हुए नुसरत ने सहमति से सिर हिलाते हुए उनकी बात की तस्दीक़ की। 

नुसरत कुछ बोल पाती तब तक योगिता जी ने नुसरत को इशारा किया, नुसरत ने उठ कर केबिन का गेट बंद किया। योगिता जी ने अपनी आलमारी से स्लिम बेल्ट निकाली और साँस अंदर खींच कर पेट पर कसकर उस बेल्ट को नुसरत की मदद से बाँध लिया, फिर केबिन में ही लगे दो-तीन बड़े से शीशों के सामने अपने पेट, पीठ को आगे–पीछे निहारा और फिर नुसरत से पूछा, “मैं मोटी तो नहीं लग रही हूँ नुसरत, हो गयी न फैट टू फ़िट?” 

“आप मोटी क्यों लगेंगी जब हैं ही नहीं, आप हेल्दी हैं, तो शेप बदलने की ज़रूरत क्या है?” नुसरत ने हैरानी से पूछा। 

“मोटी हो ना हो, हेल्दी होना भी औरतों के लिये अच्छा नहीं होता। इस देश के मर्द हर औरत को न जाने क्यों दुबली देखना चाहते हैं, उन्हीं के हिसाब से दुबला दिखें तो बेहतर है,” उन्होंने फिर अपनी बात की हामी के लिये नुसरत की तरफ़ देखा। 

नुसरत ने उनकी सवालिया नज़रों को देखकर फिर सहमति से सिर हिलाया। 

योगिता जी ने अपने जूते उतार दिए और टेबल के पीछे से कहीं हाई हील वाली सैंडिल निकाल ली और नुसरत की तरफ़ देखकर हँसते हुए बोली, “नुसरत, पेट में फैट वाला बेल्ट बाँध लिया है देख ही रही हो, अब झुका नहीं जाता। तुम ये सैंडिल मुझे ठीक से पहनावा दो, झुक कर एडजस्ट करने में दिक़्क़त होती है। आओ तो, जल्दी करो।”

नुसरत ने योगिता जी की हाई हील सैंडिल को झुककर दुरुस्त किया। 

नुसरत ने फिर सहज जिज्ञासा प्रकट की, “आपका क़द तो ठीक-ठाक है, शायद पाँच फ़ीट तीन इंच। फिर हाई हील की आपको क्या ज़रूरत है?”

“तू कुछ नहीं समझती नुसरत, अब इस देश में हाई सोसायटी में औरतों का क़द पाँच फ़ीट से कम नहीं दिखना चाहिये, सारे मर्द टाल वूमेन को ही अटेंशन देते हैं, समझी ना!” 

बाईस वर्षीय गोरी, लंबी, छरहरी नुसरत उनका, अड़तालीस वर्षीया योगिता जी का, लॉजिक नहीं समझ सकी। 

सैंडिल पहनने और मेकअप को फ़ाइनल टच-अप देने के बाद योगिता जी ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया, नुसरत ने समझा योगिता जी उसे कुछ समझाना चाहती हैं। वो उनके पास जाकर खड़ी हो गयी। ऑफ़िस के आदमक़द शीशों में योगिता जी ने नुसरत को अपने बग़ल खड़ा करके ऊपर से नीचे तक अपनी पिंक कलर की ड्रेस में ख़ुद को देखा, उससे तुलना की ख़ुद की, संतुष्ट होने पर उन्होंने मोबाइल से अपने अकेले की दुबारा एक सेल्फ़ी ली। 

नुसरत अब समझ गयी कि योगिता जी ने उसे अपने पास बुलाकर शीशे में क्या देखा था। 

योगिता जी ने पूछा, “फ़ीचर तो कल बाद में आएगा पहले ये बताओ कि आज के सेमिनार की थीम क्या है? फिर से रिमाइंड कराओ।”

“जी ‘राईज़ ऑफ़ पिंक’ आज की थीम है। आज आपको स्त्रियों के साँवलेपन, छोटे क़द और मोटी होने पर उनको जो परेशानी सामने आती है, उन रूढ़ियों और मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलना है,” नुसरत ने उनके चेहरे को पढ़ते हुए कहा। 

“हाँ, इस देश के मर्द ऐसे ही हैं, औरतों को लेकर . . . “ ऐसा कुछ बड़बड़ाते हुए वो केबिन से बाहर चली गयीं। 

योगिता जी एक अख़बार में सीनियर पद पर कार्यरत थीं और स्त्री सशक्तिकरण संबंधित उनके लेखों ने उन्हें काफ़ी ख्याति दिलायी थी। 

नुसरत उनकी इंटर्न थी, जो उनके विचारों से प्रभावित होकर उनसे काम सीखने आयी थी और उनके जैसा बनना चाहती थी। लेकिन उनका ये रूप देखकर उसके माथे पर बल पड़ गए थे। 

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टिप्पणियाँ

सरोजिनी पाण्डेय 2024/02/04 10:24 PM

सामान्य मानव मन की शाश्वत विडंबना !

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