सुंदर नगरी
कथा साहित्य | लघुकथा दिलीप कुमार15 Jan 2023 (अंक: 221, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
सब कुछ समेटा जा रहा था, आंदोलन समाप्त हो चुका था। आंदोलन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से जुड़े लोग भी अपने उन पुराने दिनों में लौटने की तैयारी में जुटे थे, जिनको वो काफ़ी पीछे छोड़ चुके थे।
जिस तिराहे से बैरिकेडिंग शुरू होती थी, वो तिराहा देह व्यापार करने वाली महिलाओं के खड़े होने की जगह थी। क्योंकि टोल पर ट्रक रुकते थे, जिस सेक्स वर्कर से ट्रक वाले का सौदा पट जाता था, वो उसकी ट्रक में बैठ कर ट्रक से चली जाया करती थी और फिर एक-दो घंटे में दूसरे तरफ़ से लौटते हुए ट्रक से वापस आ जाया करती थी।
उसी जगह खड़ी होकर देह व्यापार के संभावित ग्राहकों को आकर्षित किया जाता था, लेकिन अब उस जगह बैरिकेडिंग लगी थी और पुलिस वाले भारी तादाद में चौबीसों घंटे तैनात रहते थे। सिर्फ़ उस जगह ही नहीं पूरे एरिया में ख़ासी पुलिस तैनात रहा करती थी। टोल नाके के पीछे एक “सुंदरी नगर” नाम के स्लम में उन सेक्स वर्कर महिलाओं के घर-परिवार आबाद थे।
उस बस्ती को सब हेय दृष्टि से देखते थे मगर सभी की वाबस्तगी थी। जूली उन सबकी अगुआ थी, वैसे उसका असली नाम जूली नहीं था मगर सुंदर नगरी में किसका नाम असली था।
यहाँ नीता, रुख़साना, हरलीन और जेनी और ना जाने किन-किन नामों की लड़कियाँ आती थीं और सुंदर नगरी में आकर वो सब, शीला, नर्गिस, जूली और नगीना जैसे फ़िल्मी नाम रख लिया करती थीं। उनके पहले जन्म पर उनके नाम उनके माँ-बाप रखा करते थे जब वो समाज में लड़की बनकर पैदा होती थीं। उनका दूसरा जन्म सुंदर नगरी में होता था जहाँ वो लड़की से कॉलगर्ल बनती थीं और उनका नया नामकरण देह-व्यापार का पेशा चलाने वाले लोग किया करते थे।
हर साँझ, बिना नागा किये सुंदर नगरी से निकल कर वो सब अपने जिस्मानी रोज़गार की तलाश में उसी तिराहे पर आ जाया करती थीं। आज भी उनका एक झुंड उसी तिराहे पर मौजूद था।
तंबू-क़नात जाने लगे तो उसी जत्थे के एक ठेकेदार ने पूछा, “क्यों जूली, अब तो तुझे रोटी के लाले पड़ जाएँगे, क्या खाएगी अब?”
“रोटी ही खाऊँगी, वैसे भी तू कौन सा मुझे मुफ़्त की रोटियाँ खिलाता था, तेरे में और होटल के काउंटर में क्या फ़र्क़ था। होटल में खाते थे तो पैसा देते थे, तू खिलाता था तो पैसा नहीं लेता था तो जिस्म नोचता था,” जूली ने तुर्श ल्फ़्ज़ों में कहा।
ठेकेदार “हो-हो” करके हँसा।
“लेकिन तूने बताया नहीं कि अब तुम लोगों का चूल्हा कैसे जलेगा। आग ही जब ना होगी।”
ठेकेदार ने चुटकी ली।
“हमारा जिस्म ही हमारा चूल्हा है ठेकेदार, अदहन की तरह जब-जब हम चुरते हैं तब रोटी-भात सब तैयार हो जाता है इस भट्ठी पर,” जूली ने सपाट स्वर में जवाब दिया।
“फिर भी पेट की भूख कैसे मिटेगी तुम लोगों की?” ठेकेदार ने तंज़ कसा।
“जब तक आदमी लोगों के पेट के नीचे की भूख जगती रहेगी, तब तक हम लोगों के पेट की आग बुझती रहेगी। आज तक कोई भी कॉलगर्ल भूख से नहीं मरी, वो या तो बीमारी से मरी है रुसवाई से, समझा क्या फुद्दु,” ये कहते हुए जूली ने ठेकेदार को आँख मारी।
जूली के मुँह से फुद्दु सुनकर ठेकेदार को अजीब लगा और उसके आँख मारने से वो सकपका गया।
ठेकेदार का सकपकाया चेहरा देखकर जूली खिलखिलाकर हँस पड़ी, उसके ठहाकों में शीला, नर्गिस, नगीना के अलावा सुंदर नगरी के कुछ और भी बाशिंदों के ठहाके शामिल हो गए थे।
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