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मोर बनाम मारखोर

 

पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में आजकल प्रस्ताव पेश करने की बाढ़ आयी है। जी, ये प्रस्ताव की बाढ़ है, असली बाढ़ नहीं—जब असली बाढ़ आती है कश्मीर में, तो वो इधर के कश्मीर को ग़ुलाम कश्मीर कहना बन्द कर देते हैं और हिंदुस्तानी कश्मीर कहना शुरू कर देते हैं और तब ‘आज़ादी’ भुलाकर भारत के मत्थे मढ़ देते हैं जन्नत की दुहाई देकर। 

जन्नत से बताना ज़रूरी है कि पाकिस्तान के आसमानी हिस्से में जो जन्नत है, फ़िलहाल वहाँ पर हूरें बड़े असमंजस में हैं—बन्दा मरकर हूर पाने की लिस्ट में खड़ा है, लेकिन नीचे लोग कहते हैं कि बन्दा मरा ही नहीं—ना कफ़न, ना दफ़न और ना ही नमाजे जनाज़ा! पाकिस्तानी परेशान हैं कि उनको उतनी ही फ़ॉर्मेलिटी पूरी करनी पड़ेगी और देरी होगी जितनी कि अभिनंदन की रिहाई में देरी हुई है। 

सुना है कि टीवी एंकर फ़ज़ा ख़ान ने बताया है कि पाकिस्तान ने अभिनंदन को ना कूटनीति के कारण छोड़ा है ना जंग के डर से। बल्कि अभिनंदन की हाई-फ़ाई अंग्रेज़ी से त्रस्त होकर छोड़ दिया। रोज़ एक अंग्रेज़ी में वीडियो और अवाम अंग्रेज़ी से हलकान! पाकिस्तान के लिए अंग्रेज़ी भाषा वैसी ही है जैसे भारतीयों के लिये चीनी भाषा, चाइनीज़ सबको खाना है और चीनी ज़ुबान किसी को नहीं सीखनी है। पाकिस्तान में अंग्रेज़ी ज्ञान का ये आलम है कि बन्दा क्रिकेट में मैन ऑफ़ द मैच पाता है तो भी किसी दूसरे को पुरस्कार लेने को भेज देता है। जो अपने को अंग्रेज़ी में डेढ़ श्याना समझकर मैन ऑफ़ द मैच पुरस्कार लेने समय अंग्रेज़ी बोलता है, दुनिया कहती है कि उस बन्दे को भी किसी और अँग्रेज़ दाँ की सेवाएँ लेनी चाहियें। यानी पाकिस्तान क्रिकेट टीम में अंग्रेज़ी बोलना, शामिल होने की पहली शर्त है, बाक़ी सब दूसरी। अभिनंदन की अंग्रेज़ी से त्रस्त होकर पाकिस्तान ने भारत से गुज़ारिश की है कि अगली बार डाउन साउथ साइड के फ़ाइटर पायलट ना भेजें। किसी नॉर्थ के बन्दे को भेजें भले ही दो चार बम ज़्यादा गिरा लें पाकिस्तान पर, वरना आसिफ गफूर और कुरेशी के अलावा कोई इस अंग्रेज़ी को झेल नहीं सकता पाकिस्तान में। 

पाकिस्तान हर बात में कहता है कि हम भारत से कम नहीं, अब अगर मोदी जी को सियोल शान्ति पुरस्कार मिला तो वो कैसे पिछड़ जाएँ? पाकिस्तान में ख़ूब मनोरंजन के साधन हैं और यहाँ तक कि नेशनल असेम्बली भी हँसी-ठिठोली का अड्डा बन चुकी है वरना तालिबान ख़ान कहे जाने वाले इमरान ख़ान को नोबेल पुरस्कार के लिए प्रस्तावित ना करते। पाकिस्तान ऐसे मनोरंजक जुमलों का गढ़ है जहाँ मसूद अज़हर बीमार और हाफ़िज़ सईद धार्मिक उपदेशक बताएँ जाते हैं। तभी तो नेशनल असेंबली में इस बात का प्रस्ताव पेश होने वाला है कि पाकिस्तान का नेशनल एनिमल मारखोर को नहीं बल्कि गधे को होना चाहिये। एंकर अनिका तो ख़ुशी से चिल्ल्लाते हुए कहती हैं कि वज़ीरे आज़म साहब गधे पर ही बैठ कर नोबेल पीस प्राइज़ लेने जाएँगे . . . मोर वाले मुल्क के नेशनल एनिमल से उनका नेशनल एनिमल ख़ासा वज़नदार होना चाहिये, क्योंकि नोबेल पुरस्कार, सियोल के पुरस्कार से बड़ा है ना। वैसे भी इमरान ख़ान पाकिस्तान के जिस हिस्से वज़ीरिस्तान से आते हैं वहाँ के या तो गधे मशहूर हैं या तालिबान। देखना है तालिबान ख़ान गधे पर बैठकर नोबेल प्राइज़ लेकर वज़ीरिस्तान का नाम रोशन करेंगे या ज़मींदोज़। दुनिया पाकिस्तान को गधों का देश कहती है . . . अब देखते हैं गधों का सरताज दुनिया को कब तक उल्लू बनायेगा। 

सुना गया है कि हिंदुस्तान में उल्लुओं का महत्त्व बहुत है क्योंकि ये लक्ष्मी जी का वाहन है, इसलिये पाकिस्तान अब अपने मुल्क में उल्लुओं की आबादी बढ़ाएगा। असली उल्लू कम पड़ जाएँगे तो इंसानी उल्लुओं से अपनी कमी पूरी करेगा। किसी शायर ने शायद इसी मुल्क के लिये कहा था— 

बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है 
हर शाख़ पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा। 

वैसे पाकिस्तान को भारत ने भले ही टमाटर निर्यात करना बंद कर दिया हो लेकिन पाकिस्तान दुनिया भर में आतंक का निर्यात जारी रखेगा। उसे नोबेल का पीस प्राइज़ दो वरना वो अपना निर्यात बढ़ा देगा। ब्रांड हाफ़िज़ सईद, ब्रांड मसूद अज़हर, हक्कानी नेटवर्क, ब्रांड मसूद अज़हर उनके कुछ चुनिंदा और एक्सक्लूसिव पाकिस्तानी ब्रांड हैं जिसका निर्यात वो दुनिया भर में करता है। आतंकवाद एक उद्योग है जिसमें ट्रेंड लोग ही भर्ती होते हैं। मानव बम, रिमोट बम, दूसरे देश में जाकर बम फोड़ने के क्रैश कोर्स कराये जाते हैं और वह भी दीन के नाम पर। अल्लाह भी परेशान है कि उसके निन्यानवे नामों और इस्लाम के बहत्तर फ़िरकों में ये क़त्लोगारद पाकिस्तान ने क्यों घुसेड़ रखी है जो इंसानों के दुख-दर्द को, दीन और मज़हब में उलझा कर रखा है। मीर भी आधी रात को ‘अमर जवान स्मारक’ पर आकर दो आँसू टपकाते हैं वहीं उन्हें ग़मज़दा ग़ालिब, ज़ौक़, फ़िराक़ भी मिलते हैं। इन शायरों की आँखों में शहीदों की चिताओं की लपटें हैं, इन सबने एक अहद किया है कि अब हमारा अदब भी तुम्हारे अदब से अलग होगा। उर्दू और ग़ज़ल के नाम पर अब कुछ साझा नहीं होगा। 

वैसे इमरान की पत्नी भविष्यवाणी भी करती हैं, उनके कहने पर ही इमरान ने दूसरी बीबी को तलाक़ दिया और तीसरा निकाह उनसे किया और वज़ीरे आज़म बन गए। अब एक और भविष्यवेत्ता ने कहा है कि नोबेल पाने के लिये इमरान को चौथा निकाह कर लेना चाहिये। ठीक ही है कम से कम महिलाओं से निकाह करके उन्हें अगर नोबेल मिल जाता है तो ठीक है। कम से कम हमारे देश के निर्दोष लोगों की लाश पर मैडल पाने की जुगत तो नहीं करेगा वो। इधर भारत के एक प्रमुख राजनेता को उनके सलाहकार बता रहे हैं कि यदि वो विवाह कर लें तो उन्हें भी नोबेल पुरस्कार मिल सकता है। लेकिन दिक़्क़त ये है कि खेलों के लिए नोबेल पुरस्कार दिए नहीं जाते। वो एक बहुत प्यारे खिलौने हैं जिनसे भारत में बच्चे, जवान, बूढ़े सब खेलते हैं। अलबत्ता शान्ति का नोबेल पुरस्कार उनको ज़रूर मिल सकता है क्योंकि वो जिस जनसभा को सम्बोधित करते हैं वहाँ हद दर्जे की शान्ति होती है। 

भारत में शान्ति पुरुष का मैडल देने का रिवाज़ चल पड़ा है पाकिस्तानियों को। जब मुम्बई हमला हुआ तो उसके बाद पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म गिलानी को मनमोहन सिंह ने मैन ऑफ़ पीस कहा था। अब पुलवामा हमले के बाद भारत के कुछ बुद्धिजीवी इमरान यानी तालिबान ख़ान को शान्ति पुरुष की संज्ञा दे रहे हैं। लेकिन इमरान की समस्या ये है कि उनकी ना किसी पत्नी का कार्यकाल पूरा हुआ और ना जिस पीएम हाउस में वो रहते हैं वहाँ, ना किसी पीएम का कार्यकाल पूरा हुआ। हाफ़िज़ सईद ने इमरान ख़ान ने सख़्त लहजे में कहा है कि भले ही वो नज़रबन्द हैं लेकिन अगर इमरान ख़ान ने चौथा निकाह किया तो वो भी चौथा निकाह करेंगे, और इमरान की खिल्ली उड़ाई है कि जितना इनाम उन्हें नोबेल पुरस्कार की रक़म जीत कर मिलेगा उससे ज़्यादा इनाम तो अमेरिका ने पहले ही उस पर घोषित कर रखा है। भारत में बड़े से बड़ा गुंडा दस लाख से ज़्यादा का इनामी नहीं है जबकि पाकिस्तान में पाँच करोड़ तक के इनामी हज़रात हैं, इसे कहते हैं तरक़्क़ी।

वाक़ई पाकिस्तान ऐसे मामलात में भारत से बहुत आगे है। इधर इस्लामिक देशों के संगठन ओईसी ने पाकिस्तान की दुर्गति कर दी। पाकिस्तान वहाँ दूल्हे के उस फूफा की तरह मुँह फुलाये बैठा है जो शादी में तो नहीं जाते मगर शादी में मिलने वाले नेगचार और कपड़ों की बाट जोहता रहता है। फ़ाउंडर मेंबर पाकिस्तान ये बात भूल गया कि दूल्हे के फूफा पुराने हो जाते हैं जब दूल्हे के जीजा बारात में पहुँच जाते हैं। भारत की फ़िलहाल वही हैसियत है। यूएई ने कहा है पाकिस्तान से—भारत को तो हम बुलाकर ही रहेंगे क्योंकि हमको तेल बेचना है, लेकिन पाकिस्तान के हिस्से की तीन अरब डॉलर की भीख और बासी बिरयानी उसे भिजवा दी जाएगी। पाकिस्तान ने अपनी अंतरराष्ट्रीय भिखारी की छवि को मेन्टेन रखा, भीख ले ली चाहे जाकर मिले या घर तक आये। ओइसी की धमकी पर पाकिस्तान बिलबिलाते हुए कह रहा है— 

“निकलना खुल्क से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।” 

तो गधे पर बैठकर जब कूचे से निकले हैं तो मारखोर का क्या काम? वैसे भी वो एक बकरा है जैसे पाकिस्तानी अवाम बकरा है वहाँ के हुक्मरानों के लिये। तो अब ये ज़ेरे बहस मोर बनाम मारखोर नहीं, बल्कि मोर बनाम गधा होगी। 

कविवर पाकिस्तान के गधा प्रेम के बारे में कहते हैं— 

“गधों के सिर पर धरा लिलारा।
का करिहैं अवधेश कुमारा॥”
 

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