अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

पबजी–लव जी

 

कारगिल युद्ध के बाद भारत के अनमोल रत्न सचिन तेंदुलकर ने कहा था कि “जब देश की सीमा पर हमारे जवान पाकिस्तान से युद्ध लड़ रहे हों तो ऐसे समय में पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने का कोई मतलब नहीं है।” सीमा पर चल रही उस वक़्त की जंग के मद्देनज़र सचिन की बात का देशवासियों ने पुरज़ोर समर्थन किया था। तब से अब तक पाकिस्तान, द्विपक्षीय सीरीज़ खेलने के लिये भारत से नाक रगड़ रहा है, ताकि आईपीएल में बरस रही अकूत दौलत के कुछ छींटे उनके मुल्क पर भी पड़ सकें। 

लेकिन तब से न तो भारत के प्रति पाकिस्तान की बदमाशी कम हुई है और न ही पाकिस्तान से क्रिकेट को लेकर सचिन तेंदुलकर की बात का इक़बाल कम हुआ है इसीलिये पाकिस्तान से हमारे क्रिकेट के रिश्ते सामान्य नहीं हो पाए हैं। 

एक बार बात बिगड़ी तो फिर बिगड़ती ही चली गई। क्रिकेट के रिश्ते टूटे तो हर क़िस्म के रिश्ते बाघा और अटारी बॉर्डर वाले दोनों देशों के टूटते ही चले गए, यहाँ तक कि भारत ने टमाटर और इफ़रात पानी भी पाकिस्तान को देना बंद कर दिया। इनकी सुलह यूनाइटेड नेशन्स और यूएसए की पहल भी नहीं करवा पाई। 

लेकिन जो काम राजनयिक, राजनैतिक और कूटनीतिक स्तर से नहीं हो पाया वो इश्क़ ने कर दिखाया, वो भी एक गेमिंग ऐप के ज़रिये। 

तब सीमा पर हुए कारगिल युद्ध के ज़रिये सचिन की बात देश में लाइमलाइट में आयी थी अब पबजी के खेल में हुई सचिन और सीमा के सम्पर्क और उसके बाद की घटनाओं से मीडिया ने आसमान सर पे उठा रखा है है। 

किसी शायर ने ऐसे ही हालातों पर बड़ी दिल-फ़रेब बात कही है:

“उसकी बेटी ने उठा रखी है दुनिया सिर पे 
शुक्र है, अंगूर के कोई बेटा न हुआ।” 

पाकिस्तान भी ग़ज़ब मुल्क है, वो अपने बाशिंदों को रोटी, बिजली, पानी, सुरक्षा नहीं दे पाता लेकिन अगर उसका कोई बाशिंदा भागकर भारत आ जाये तो उस मुल्क के तमाम लोग नाक-भौं सिकोड़ रहे हैं कि कहीं भी जाते मगर भारत तो हरगिज़ नहीं जाना था। 

अब बंदूक और नफ़रत पर पल रहे और आटे के लिये मारामारी कर रहे पाकिस्तानियों को कौन समझाए:

“भूख न देखे जूठा भात 
नींद न देखे टूटी-खाट
प्रेम न देखे जात-जात”

क्योंकि भले ही पबजी के ज़रिये हुआ हो मगर “लव तो लव है जी” भारत में कुछ अति उत्साही सोशल मीडिया जीवी लोग ख़ुश हैं कि उन्हें जैसे कोई “भौजी” मिल गई हो। 

लेकिन हद तो तब हो गयी जब सचिन-सीमा के मीडिया ट्रायल में पाकिस्तान के सिंध सूबे के डकैतों की भी एंट्री हो गयी। 

वैसे तो पाकिस्तान में डकैत और गधे इफ़रात में पाए जाते हैं। भारत में लोगों की समझ में ये नहीं आ रहा है कि ये डकैतनुमा गधे थे या गधेनुमा डकैत जो यूनियन ऑफ़ इंडिया को वीडियो जारी कर धमका रहे हैं कि “पाकिस्तान से भाग कर आई हुई लड़की को ज़बरदस्ती उसके देश वापस भेजो वरना वो पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हमला करेंगे।” अरे सिंध के डकैतनुमा गधो, पाकिस्तान के पाँचों सूबों में दिन-रात अल्पसंख्यकों पर हमले जारी हैं, इसमें नया क्या है? जल्द ही पूरे पाकिस्तान से अल्पसंख्यक वैसे ही नेस्तनाबूद हो जाएँगे जैसे अफ़ग़ानिस्तान से हो गए। 

अब इन डकैतनुमा गधों को कौन समझाए कि इश्क़ किसी भी सीमा या सरहद को नहीं मानता, क्योंकि अगर ऐसा होता तो भारत में अपने-अपने फ़ील्ड में शिखर छूने वाली महिलाएँ रीना राय और सानिया मिर्ज़ा पाकिस्तान के युवकों से क्यों विवाह करतीं? 

कुछ डकैतनुमा गधे जो पाकिस्तान से वीडियो बनाकर धमकी देते हुए रेंक रहे हैं वो सब कदाचित इस बात से अनभिज्ञ हैं कि भारत में नेपाल के रास्ते भागकर आई हुई महिला ने कहा है कि “उसे भारत में ही रहना है, भले ही ज़िन्दगी जेल में बितानी पड़े, वो जीते जी हरगिज़ पाकिस्तान वापस नहीं जाएगी क्योंकि मध्ययुग में जी रहे पाकिस्तान के लोग उसे पत्थरों से मार-मारकर उसकी जान ले लेंगे।” 

सियासत के मोर्चे पर यही ग़नीमत रही कि पाकिस्तान के “नेशनल पप्पू” और “बदमाश शरीफ़” ने इस घटना के बाबत अभी कोई स्टेटमेंट नहीं दिया है। 

मीडिया ने इसके अलावा चंद्रयान पर भी अभियान छेड़ रखा है। 

पाकिस्तान के यू-टर्न खान कहे जाने वाले इमरान खान के पूर्व के एक विश्वस्त सहयोगी मगर जेल जाने के डर से उनसे अलग हो चुके “डब्बू” के उपनाम से मशहूर फवाद चौधरी भी इस मीडिया के सर्कस में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं, जो अपनी अक़्लमंदी भरे बयानों और सेहत दोनों से काफ़ी मोटे हैं। डब्बू हज़रात उस मुल्क के साइंस और टेक्नॉलोजी मिनिस्टर भी रह चुके हैं। जहाँ दुनिया ने भारत के चंद्रयान अभियान को मानवता के इतिहास का “मील का पत्थर” माना है, वहीं पाक के एक्स मिनिस्टर डब्बू ने भारत के चंद्रयान के अभूतपूर्व कामयाबी को मामूली मानते हुए एक दानिशमंद बयान जारी किया है, “जब ज़मीन से ही हमें चाँद दिखता है तो चाँद पर चंद्रयान भेजने की ज़रूरत ही क्या है?” 

वाह रे डब्बू, सदके जावां तेरी अहमकाना दानिशमंदी पर, इन डब्बू हज़रात की अक़्ल को “वण्डर ऑफ़ द वर्ल्ड” क़रार दिया जाना चाहिये। 

ये वही दानिशमंद हज़रात हैं जिन्होंने पाकिस्तान का साइंस और टेक्नॉलोजी मिनिस्टर रहते हुए बयान दिया था कि “अगर आपके घर के छोटे बच्चे मिट्टी खाते हैं तो उन्हें मिट्टी के बजाय सीमेंट फ़राहम कराएँ ताकि वो आगे चलकर जाँबाज़ पाकिस्तानी बाशिंदे बन सकें।” 

पाकिस्तान वाक़ई बतौर मुल्क एक केस स्टडी है। पहले पाकिस्तान में नारा लगता था “पाकिस्तान ज़िन्दाबाद” अब पाकिस्तानी नारा लगाते हैं “पाकिस्तान से ज़िन्दा भाग” यानी पाकिस्तान से अगर ज़िंदा भाग सकते हो तो भागो, क्योंकि पाकिस्तान में रहोगे तो या तो आटे की लाइन में भगदड़ से मरोगे और कहीं बच गए तो कोई भी किसी को कोई धार्मिक अवमानना का आरोप लगा कर मार देगा। 

एक मशहूर पाकिस्तानी शायर ने तो पाकिस्तान के हालात पर कहा था:

“न जाने कौन किसका क़त्ल कर दे काफ़िर कहकर, 
शहर का शहर मुसलमान बना फिरता है”

आटे की लाइन और पत्थरबाज़ी से हुई मौत से ही हर पाकिस्तानी सुबह ख़ुद को नसीहत देता है “पाकिस्तान से ज़िन्दा भाग” बाक़ी सब पबजी, लव जी औऱ भौजी वग़ैरह तो ज़िंदा बचे रहने के लतीफ़े हैं, क्योंकि आम पाकिस्तानी के लिये तो:

“ज़िंदगी से बड़ी कुछ सज़ा ही नहीं 
और जुर्म क्या है कुछ पता ही नहीं।” 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

लघुकथा

बाल साहित्य कविता

कहानी

सिनेमा चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं