अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

पेट्रोल पंप

 

उसे पेट्रोल पम्प मिल गया है ये सुना अभी, 
कैसे हुआ ये चमत्कार अवाक्‌ हैं सभी, 
अब और भी लघु लगने लगी है मेरी लघुता, 
इस पेट्रोल पंप से उसकी कितनी बढ़ेगी प्रभुता
अब सालेगी न उसे कोई बात चिंता की, 
भले ही बाबूजी की पेंशन रहे जब-तब रुकती, 
क्योंकि पेट्रोल पंप को होना होता है एक वरदान सरीखा, 
यह मैंने भी जाना और सीखा, 
कोई देवत्व ज़रूर ही होता होगा 
इन पेट्रोल पंपों में शायद, 
नेता, अधिकारी, धर्माचार्य से 
लेकर वेश्या तक, 
सभी तो इस मृग मरीचिका के पीछे दौड़े-भागे फिरते हैं, 
इनको लेकर सरकारों के भी, अपने-अपने सब्ज़-बाग़ हैं, 
इस पेट्रोल पम्प से जुड़ी, हसरतों की एक दुनिया आबाद है, 
विधवा विकलांग, छोड़ी हुई औरत से लेकर, 
ऊँची जाति, जनजाति और 
अगड़े-पिछड़े, कमतर-बेहतर, 
जिनको हैं रहने और खाने के लाले, 
वो भी हैं पेट्रोल पंप का ख़्वाब पाले, 
वैसे तो तरक़्क़ी पाने के और भी रास्ते हैं 
मगर पेट्रोल पंप पाने के फ़ॉर्म काफ़ी सस्ते हैं, 
अब मैं और मेरा दोस्त एक जैसे न रहें शायद, 
वैसे मेरी और उसकी कभी लम्म-सम्म एक जैसी थी हैसियत 
अभी कुछ वर्षों पहले तक ही तो सब कुछ एक जैसा ही था, 
खाना पीना स्कूल, ट्यूशन, 
घर की कलह झगड़े तमाशे और सिर फुटव्वल भी, 
अलबत्ता हमारे घर में शान्ति ज़्यादा थी, 
और उसके घर में संयम ज़्यादा था, 
उससे थोड़ा इक्कीस ही सही, 
मगर हमारा वैभव था, 
फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था उसके, बाप की नौकरी सरकारी थी, 
और मेरे पिता प्राइवेट नौकरी में बारह घण्टे खटा करते थे, 
फिर सरकारों की तरह ही 
बदला उनका रंग-ढंग, 
दिन-ब-दिन वह होते गये धनवान, 
पहले कारें आईं फिर उनका तिमंज़िला होता गया मकान, 
मैं सरकारी कॉलेज में पढ़ा और जूझा, 
वह इंजीनियरिंग पढ़ने गया और बिन पढ़े छोड़ भी आया, 
वो रात-रात घूमा करता था, 
और मैं रात-रात भर पढ़ता और खटता रहता था, 
वह ऐश पर ऐश ही करता रहा, 
मैं मेहनत से पढ़ता-खटता रहा, 
ये और बात थी कि तब लोगों को, 
उसके बजाय मेरा भविष्य कहीं ज़्यादा सुरक्षित लगता था, 
वह हज़ार कामों में उलझा, 
मैं राह बनाकर चलता गया, 
अचानक एक दिन में ही, फिर हम में इतना फ़र्क़ कैसे हो गया? 
सुनते हैं जब बहुत वर्षों बाद धरा पर कहीं पेट्रोल न होगा, 
तब तक शायद मैं भी जीवित न रहूँ, 
तब शायद मेरी और उसकी हैसियत फिर एक जैसी हो जाये, 
उम्मीद तो नहीं है मगर फिर भी, 
कितना अच्छा होता अगर? 
मेरे भी ख़ानदान में काश, 
कोई एक पेट्रोल पंप पा जाए?

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

लघुकथा

बाल साहित्य कविता

कहानी

सिनेमा चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं