ज़रा हटके, ज़रा बचके
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी दिलीप कुमार1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
कई दशकों पूर्व एक गाना बड़ा मशहूर हुआ था “ए दिल है मुश्किल है जीना यहाँ, ज़रा हटके ज़रा बचके ये है बॉम्बे मेरी जां।”
तब भारत की आर्थिक राजधानी के दो नाम हुआ करते थे। बंबई और बॉम्बे। बम्बई आम जन की ज़ुबान में शहर को बोला जाता जबकि इलीट क्लास के लोग शहर को बॉम्बे कहा करते थे। यह फ़र्क़ अभी भी है जैसे आम आदमी महानगर के उपनगर बांद्रा कहता है जबकि इलीट क्लास उसे बैंड्रा कहता है। एक मशहूर स्टेशन को इलीट क्लास विले पार्ले कहते हैं जबकि आम आदमी उसी स्टेशन को पार्ला कहता है। नब्बे के दशक में भारत की आर्थिक राजधानी के देसी और इलीट नाम एक हो गए और शहर को एक नया सर्वमान्य नाम मिला “मुंबई” और इस शहर में रहने वाले लोग ख़ुद को मुंबईकर कहलाते हैं। मुंबई को “मिनी भारत” भी कहा जाता है और मुंबईकर से जुड़ी कुछ चीज़ें बेहद दिलचस्प एवं अनूठी होती है।
1. मुंबई के सबसे व्यस्त एवं चर्चित इलाक़े का नाम “अँधेरी” है लेकिन रात को सबसे ज़्यादा रौशन और जगमग अँधेरी उपनगर ही होता है।
2. मुंबई की उपनगरीय ट्रेन सेवा को “लोकल” कहा जाता है और आम मुंबईकर “चर्चगेट से बोरीवली” तक की लोकल ट्रेन का स्पेशल पास ज़रूर बनवा कर रखता है।”
3. महिलाओं के लिये आमतौर काफ़ी सुरक्षित शहर माना जाता है। आम तौर पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सीट आदि के लिये पुरुष ज़्यादा लड़ते-झगड़ते हैं पर मुंबई के लोकल ट्रेन में महिलाओं के लिये आरक्षित डिब्बों में महिलाओं में लड़ाई-झगड़े ज़्यादा होते हैं।
4. कहते हैं मुंबई में “भगवान का मिलना आसान है मगर मकान का मिलना मुश्किल है।” मुंबई में छोटे घरों को खोली कहते हैं जो जल्दी ख़ाली नहीं मिलती।
5. मुंबई में कहा जाता है कि यहाँ के इंसानों की आधी ज़िन्दगी क्यू यानी लाइन में बीत जाती है। ट्रेन का टिकट लेने से लेकर शौचालय तक जाने की लाइन में।
6. मान्यता है कि अगर आप कल्याण से वीटी जाने वाली लोकल ट्रेन में ‘पीक आवर्स’ में गर्दी झेलकर बॉम्बे वीटी स्टेशन पहुँच गए और शाम को सकुशल वीटी स्टेशन से कल्याण लौट आये। यदि इसके बाद अगर आप दुखी या व्यथित नहीं हैं तो आप आसानी से देश में कहीं भी ‘सर्वाइव’ कर सकते हैं।
7. मुंबई में लोगों को ग़ुस्सा आता है तो लोग ढेर सारे अपशब्द कहने के बजाय ‘दिमाग का दही मत कर’ कहकर क्रोधित होने की वार्निंग दे देते हैं।
8. मुंबई में जिस वाक्य पर सबसे ज़्यादा लोगों का ध्यान रहता है वह “अगला स्टेशन . . .”, “पुढे स्टेशन . . .”, “नेक्स्ट स्टेशन . . .” तीनों भाषाओं में हो रही उद्घोषणा पर ट्रेन में सफ़र कर रहे लोगों का सबसे ज़्यादा ध्यान रहता है और अपने गंतव्य के स्टेशन का नाम आते ही यात्री एलर्ट होकर ट्रेन के दरवाज़े के पास आकर खड़े हो जाते हैं ताकि जल्दी से उतर सकें।
9. मुंबई में कोई जब अपने गृहनगर चला गया हो तो उसके बारे में कहा जाता है कि वह अपने गाँव चला गया है। भले ही जाने वाले का गृहनगर दिल्ली या कोलकाता जितना बड़ा महानगर हो पर बोलेंगे उसको गाँव ही।
10. जिस तरह आलू ऑलराउंडर होता है हर सब्ज़ी के साथ घुल मिल जाता है उसी तरह जैसे आलू-गोभी, आलू-मटर आदि। उसी तरह पाव भी मुंबई का सबसे ऑलराउंडर भोज्य पदार्थ है जो हर किसी के साथ मिल जाता है जैसे—बड़ा पाव, मिसिल पाव, रगड़ा पाव, पाव भाजी। इसके अलावा पाव, आलू की तरह ही ऑलराउंडर है जैसे चाय पाव, दाल पाव, सब्ज़ी पाव या सूखा पाव भी खाने में धड़ल्ले से प्रयोग होता है।
11. मुंबई का सबसे प्रसिद्ध नाश्ता एक ही जो सभी तबक़े के लोग बड़े चाव से खाते हैं लेकिन उत्तर भारतीय उसे ‘बड़ा पाव’ कहते हैं जबकि मराठी-गुजराती उसी को ‘वड़ा पाव’ कहते हैं।
12. वैसे तो लोग जब तक बेहद ज़रूरी न हो तब तक संडास यानी शौचालय शब्द ज़ुबान पर नहीं लाना चाहते मगर मुंबई की उपनगरीय लोकल ट्रेन सेवा में सैंडहर्स्ट रोड नाम का एक स्टेशन है जिसे लोग आम बोलचाल की भाषा में धड़ल्ले से संडास रोड कहते हैं ताकि उन्हें ज़ुबान को ऐंठ कर न बोलना पड़े।
13. जैसे दालचीनी में दाल नहीं होती, ऑमलेट में आम नहीं होता और कोलगेट में कोई गेट नहीं होता है वैसे ही मुंबई के चर्चगेट स्टेशन के आसपास कोई चर्च नहीं है।
14. आम तौर पर किसी शहर में पता पूछने पर लोग लेफ़्ट या राइट जाने की बात कहते हुए लैंडमार्क के रूप में किसी होटल या चौराहे के की बात करते हैं। पर मुंबई में पता पूछने पर कहते हैं “सिग्नल से लेफ़्ट/राइट मारो फिर एक ब्रिज गिरेगा, उसी के बाज़ू का एड्रेस है।”
15. लोकल ट्रेन के हर डिब्बे में गेट के पास कोई न कोई प्लैटफ़ॉर्म विशेषज्ञ ज़रूर समाजसेवा करता मिल जायेगा जो बिना पूछे ही लोगों को बताता मिलेगा कि “आगे आ जा, इस स्टेशन पर प्लैटफ़ॉर्म लेफ़्ट/राइट बाज़ू आयेगा।”
16. मुंबई में अक्सर लोग फ़िल्म स्टारों के घर देखने के लिये पाली हिल जाने को सोचते हैं। इस वीआईपी इलाक़े में ऑटो वाले जाने से कतराते है क्योंकि वापसी की सवारी नहीं मिलती और ऑटो वालों को ख़ाली लौटना पड़ता है। सवारी ऑटोवाले से जब पूछती है “पाली हिल जायेगा।” ऑटो वाले अक्सर जाने से इंकार कर देते हैं तो सवारी झल्लाकर कहती है कि “पाली हिल नहीं जाएगा तो क्या ऑटो से समंदर पार करके दुबई जाएगा।” ऑटो वालों से सवारियों की चिक-चिक तमाशबीनों का ख़ूब मनोरंजन करती है।
17. वैसे तो ट्रेनों में बैठने को लेकर सभी को बराबर अधिकार प्राप्त हैं लेकिन चर्चगेट से चलने वाली ‘विरार की लोकल’ में बोरीवली से पहले उतरने वाला पैसेंजर/कम्यूटर अगर बैठ जाये तो उसकी भूल को अपराध की कोटि का माना जा सकता है।
18. मुंबई में हर दिन आपको मोटिवेशनल स्पीकर मिल जाते हैं। मुंबई की उपनगरीय बस सर्विस ‘बेस्ट’ का कंडक्टर थोड़ी-थोड़ी देर बाद सवारियों को ‘पुढ़े चला’ कहता रहता है यानी कि आगे बढ़ो। बेस्ट के कंडक्टर मोटीवेशनल स्पीकर का भी रोल निभाते रहते हैं।
19. मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए वाक़यात के बारे में कहा जाता है कि “लव में, वार में और लोकल ट्रेन में सब कुछ जायज़ है।” यह हैरानी की बात है कि ख़ाली ट्रेन में लोग खड़े होकर सफ़र करते हैं और भरी ट्रेनों में लोग सीट के लिये मारपीट करते हैं।
20. मुंबई में अच्छी चीज़ों की उपमा देने के लिये ‘झकास’ शब्द और ख़राब चीज़ों को बताने के लिये ‘बकवास’ शब्द का प्रयोग ख़ूब होता है जैसे कि “वड़ा पाव बोले तो झकास, बर्गर बोले तो बकवास’।
21. बरोबर, एक नम्बर, आई शपथ, देवा शपथ, झोलझाल, लोचा, घंटा फ़र्क़ नहीं पड़ने का, कट ले, एक नम्बर, पांडु, फाड़ू, पार्टी तो बनती है जैसे शब्द रोज़मर्रा के शब्द मुम्बई में आपको सारे दिन सुनने को मिलेंगे।
तो फिर माया नगरी, सपनों की नगरी को इक्कीस तोपों की सलामी देते हुए “ईहै बम्बई नगरिया तू देख बबुआ।”
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