स्पर्धा के दिन
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु अरुण कुमार प्रसाद15 Nov 2024 (अंक: 265, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
स्पर्धा के दिन।
बहुत नुकीले थे।
सुख उपजा।
नीला आकाश।
ईश्वर से ख़ाली था।
भाग्य यूँ रोया।
बुझा-बुझा सा।
रात, दिन दोनों ही।
कवि के दिन।
जातिवादिता।
संघर्षों पर भारी।
श्रम अस्पृश्य।
पढ़ाई पूरी।
समझ नहीं सके।
दुनियादारी।
आश्चर्य भरा।
सत्ता का आकर्षण।
भग्न चिंतन।
पसीना सूखा।
श्रम था मुस्कुराया।
भूख रह गया।
क्या क्या आया।
रामचन्द्र के साथ।
पूजा के सिवा।
प्रजा की मंशा।
अनछुआ सुहाग।
वोट तो हुआ।
राष्ट्र न हुआ।
मतदान का तन।
लूट-खसोट।
कह ही गया।
उमर का पड़ाव।
बेकार हुए।
प्रेम हारे तो।
खजुराहो का राग।
शोक संवाद।
दम से लगो।
मुश्किलें पराजित।
तेरी विजय।
धर्म को धर्म।
रहने नहीं दिया।
मनुवादियो।
बुद्ध जियें तो।
खण्डहरों से निकलें।
शान्ति रो रही।
बुद्ध जियें तो।
खण्डहरों से निकलें।
युदध हो रहा।
डरता रहा।
परिश्रम का स्वाद।
भूखा सो गया।
हाइकु रुष्ट।
सौन्दर्य क्यों ग़ायब।
पसीना स्याही।
साड़ी उलझी।
तन नहीं सुलझा।
औज़ार गिरा।
वचनबाज़ी।
वैवाहिक संस्कार।
असत्य है क्या?
चाँद सहमा।
चाँदनी भयी आग।
कोई तो आया।
टूटी तपस्या।
कनखी तूने मारी।
समा अंक में।
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