पुराना साल–नया वर्ष
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
कितने आँसू बहे आँख से
कितनी बिखरी हैं ख़ुशियाँ।
किन-किन लोगों ने पिये अश्रु कण
किस-किसने उछाले हँसी यहाँ।
कितने भाग्य सौभाग्य बने।
किस-किस का भाग्य दुर्भाग्य बना।
कितने उच्छ्वास गगन में फैले
कितना रुदन है हास बना।
कितना जीवन उल्लसित रहा
किस-किस का हताशा से रहा भरा।
कितने दिल बासों सके उछल
कितना मन द्विधा से रहा भरा।
कितने विहान उज्ज्वल–उज्जवल
कितना सूरज था थका हुआ।
कितनी किरणें नभ तक फैली
कितना था एवम् ढका हुआ।
कितने खग नभ को चूम सके
कितनों के पर कट गए यहाँ।
कितने पैरों को ठेस लगी
कितने मंज़िल तक, कहाँ, कहाँ।
कितने गीतों को मिली ध्वनि
कितने बिन गाये लुप्त हुए।
कितने स्वर आँसू पोंछ गये।
कितने सप्तक-सुर ज़ब्त हुए।
किन फूलों का इंद्रधनुष बना
कितने क़दमों से गये कुचल।
फुलवारी किस माली का खिला
खिलने को कौन रह गये मचल।
नदियाँ कितनी फिर सूख गयीं
कितनी सागर में मिल पायीं।
कितने पत्ते रह सके हरे
किस-किस की नज़र भर-भर आई।
कितने सुगंध तन के बिखरे
कितने मन, मनमोहन हो पाये।
कितनी बिखरी सौंदर्य-छटा
कितने वे शोभन हो पाये।
कितने संकल्प अब लेंगे हम
कितनों के लिए होगा अब रण।
जय के लिए कितनी प्रतिबद्धता का
आठों याम हमें रहेगा स्मरण।
हर पीड़ा की सूची बनाएँगे
जिसको करना होगा ही नष्ट।
सारे पथभ्रष्ट सुधारेंगे
नीयत, नीति करके स्पष्ट।
भूखे पेटों को भरेंगे हम
प्यासे नद की छाती गीली।
हर सिर के ऊपर छत रखकर
रोकेंगे हर आसमाँ नीली।
कल्याण मंत्र कर लेंगे हम
और परोपकार ईश्वर पूजा।
हर दुःख का सुख में परिवर्त्तन
होगा लक्ष्य तथा नहीं दूजा।
साम्यता शब्द की जाँच-परख
समता को करेंगे परिभाषित।
तथा जीव-तत्व से भर-भर कर
हर ‘वाद’ की आत्मा को निर्मित।
ऐसा संसार बनाएँगे कि
देवता भी होंगे सम्मोहित।
और यहाँ जन्म लेने को वे
सौभाग्य कहेंगे होंगे आनंदित।
सबके अधिकारों की रक्षा
शासन का पहला होगा कर्त्तव्य।
जीवन का हर क्षेत्र और
आतुर करने को उच्च, भव्य।
होंगे दिव्य समय के कण-कण भी
सौंदर्य, शौर्य सब होंगे दिव्य।
तथ्यात्मक होंगे कर्म, कथन
मेरे तेरे सब आत्म-वचन।
अपना मनुष्य, मनुष्य करके
मानवता की ध्वज फहराएँगे।
सत्य, अहिंसा उन्नत करने
हर जतन यहाँ अपनाएँगे।
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