अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

पुराना साल–नया वर्ष

 

कितने आँसू बहे आँख से 
कितनी बिखरी हैं ख़ुशियाँ। 
किन-किन लोगों ने पिये अश्रु कण 
किस-किसने उछाले हँसी यहाँ। 
 
कितने भाग्य सौभाग्य बने। 
किस-किस का भाग्य दुर्भाग्य बना। 
कितने उच्छ्वास गगन में फैले
कितना रुदन है हास बना। 
 
कितना जीवन उल्लसित रहा
किस-किस का हताशा से रहा भरा। 
कितने दिल बासों सके उछल
कितना मन द्विधा से रहा भरा। 
 
कितने विहान उज्ज्वल–उज्जवल 
कितना सूरज था थका हुआ। 
कितनी किरणें नभ तक फैली 
कितना था एवम् ढका हुआ। 
 
कितने खग नभ को चूम सके 
कितनों के पर कट गए यहाँ। 
कितने पैरों को ठेस लगी 
कितने मंज़िल तक, कहाँ, कहाँ। 
 
कितने गीतों को मिली ध्वनि 
कितने बिन गाये लुप्त हुए। 
कितने स्वर आँसू पोंछ गये। 
कितने सप्तक-सुर ज़ब्त हुए। 
 
किन फूलों का इंद्रधनुष बना
कितने क़दमों से गये कुचल। 
फुलवारी किस माली का खिला
खिलने को कौन रह गये मचल। 
 
नदियाँ कितनी फिर सूख गयीं 
कितनी सागर में मिल पायीं। 
कितने पत्ते रह सके हरे 
किस-किस की नज़र भर-भर आई। 

कितने सुगंध तन के बिखरे 
कितने मन, मनमोहन हो पाये। 
कितनी बिखरी सौंदर्य-छटा 
कितने वे शोभन हो पाये। 
 
कितने संकल्प अब लेंगे हम 
कितनों के लिए होगा अब रण। 
जय के लिए कितनी प्रतिबद्धता का
आठों याम हमें रहेगा स्मरण। 
 
हर पीड़ा की सूची बनाएँगे 
जिसको करना होगा ही नष्ट। 
सारे पथभ्रष्ट सुधारेंगे 
नीयत, नीति करके स्पष्ट। 
 
भूखे पेटों को भरेंगे हम 
प्यासे नद की छाती गीली। 
हर सिर के ऊपर छत रखकर 
रोकेंगे हर आसमाँ नीली। 
 
कल्याण मंत्र कर लेंगे हम 
और परोपकार ईश्वर पूजा। 
हर दुःख का सुख में परिवर्त्तन 
होगा लक्ष्य तथा नहीं दूजा। 
 
साम्यता शब्द की जाँच-परख 
समता को करेंगे परिभाषित। 
तथा जीव-तत्व से भर-भर कर 
हर ‘वाद’ की आत्मा को निर्मित। 
 
ऐसा संसार बनाएँगे कि
देवता भी होंगे सम्मोहित। 
और यहाँ जन्म लेने को वे 
सौभाग्य कहेंगे होंगे आनंदित। 
 
सबके अधिकारों की रक्षा 
शासन का पहला होगा कर्त्तव्य। 
जीवन का हर क्षेत्र और 
आतुर करने को उच्च, भव्य। 
 
होंगे दिव्य समय के कण-कण भी
सौंदर्य, शौर्य सब होंगे दिव्य। 
तथ्यात्मक होंगे कर्म, कथन 
मेरे तेरे सब आत्म-वचन। 
 
अपना मनुष्य, मनुष्य करके 
मानवता की ध्वज फहराएँगे। 
सत्य, अहिंसा उन्नत करने
हर जतन यहाँ अपनाएँगे।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता - हाइकु

कविता

चिन्तन

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं