सूर्य
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु अरुण कुमार प्रसाद1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
सूर्य आहत
हमारे अकर्म पे
‘कोरोना’ मिला
उगता रहा
उदय के पूर्व से
हमारा रवि
जीव का पिता
सूरज का होना था,
स्रष्टा का दावा
रवि अनास्त
विज्ञान का ज्ञान भी
ग्रहों का पूज्य
वेदज्ञ रवि
हमारा है ईश्वर
तन्तु-वाहक
अपना जन्म
सूर्य को नहीं पता
कौन है पिता!
ऊर्जा सूर्य का
क्रोड़ में है उसके
गलते कण
सूर्य स्वर्णाभ
सूर्य अग्निवत् रौद्र
सूर्य रक्ताभ
सारा विज्ञान
सूर्य सा ही महान
केंद्र व सतह
सूर्य का देह
है ताप, ताप, ताप
सबों का भाप
रश्मि का कण
तपा हुआ ही आता
होता सा क्षीण
पृथ्वी का भाग्य
दूर सूर्य है स्थित
आनन स्मित
सूर्य भी, धरा
निराधार झूलता?
रहस्य है क्या?
स्थिति है स्थिर
अविराम स्पंदन
सूर्य भी, धरा
सूर्य का पथ
सूर्य सा ही विराट
वर्षों विशाल
सूर्य से बँधा
समस्त नव ग्रह
सारे मोहित
व्योम के मध्य
गूढ़ तत्व गुरुत्व
व्योम में व्याप्त
चुम्बकत्व सा
अदृश्य व अधीर
गूढ़ गुरुत्व
गुरुत्व-खींचे
जुड़ा हुआ ही रखे
पिंड, पिंड को
प्रातः का सूर्य
लालिमा युक्त उगे
मनभावन
संध्या का सूर्य
बड़ा ही उत्तेजक
स्वप्न ले आए
सूर्य देवता,
नहीं है,मैं दूँ बता
मित्र सा शत्रु
एक अवधि
सूर्य की तय आयु
ध्वंस शाश्वत
मृत्यु से पूर्व
हत्यारा होगा सूर्य
जीव, जड़ का
सूर्य रश्मि ये
रंगों का है मिश्रण
इंद्रधनुष
पृथ्वी से सूर्य
शत वृहत् है भारी
आकार सह
सूर्य उगले
डायनियों से कण
आफ़त लाता
सूर्य ग्रहण
खगोलीय घटना
न देवासुर
सूर्य अयोद्धा
काल का परिणाम
स्वयं असिद्ध
धर्मांध नहीं
सूर्य, नक्षत्र, तारे
बाँधते हम
रक्षा-बंधन
चलो बाँधने सूत्र
सूर्य सा भ्राता
सूर्य विश्वास
जीव–जन्तु, वृक्ष का
सुंदर न मात्र
सूर्य देखता
पृथ्वी से छेड़छाड़
कर्म हमारा
सूर्य करता
विकृत उत्सर्जन
अणु के कण
सूर्य अद्भुत
सर्वस्व हित सम
हम विषम
दौड़ता सूर्य
फ़ुर्ती से दौड़ो, लक्ष्य
हमें दौड़ाता
पूर्व सूर्य के
न था न होगा कुछ
पश्चात् भी तथा
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