ज्योतिपात
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
जले ज्योति,
बढ़े ज्योति।
अँधेरा बड़ा घना है।
चोटियाँ उठें।
उर्ध्वाकार बढ़ें।
विवेक में है गह्वर वृहत।
उज्ज्वल हो आत्मा।
फैले ज्ञान।
गर्व हो गया है गौरव।
ध्वनि हो भाषा।
शब्द मधुर।
कोलाहल है प्रचंड।
शान्ति हो मुखर।
स्वत: तुकांत।
हर आग है उग्र।
जल हों निर्मल।
निर्मलता प्रबुद्ध।
आदमी है मलिन।
सत्य हों सुंदर।
सुन्दरता ईश्वरीय।
मिथ्या से चुपड़ा है ‘सत्य’।
विचार हो उत्कृष्ट।
उत्कृष्टता अर्थनिष्ठ।
प्रदूषित हैं विचार।
शिक्षा हो समझदार।
समझ सक्रिय।
और आर्थिक भी हो।
शासक हों दृढ़।
दृढ़ता कल्याणकारी।
शासन है अति मोहग्रस्त।
मनुष्य हो मानव।
मानव मानवीय।
प्रदर्शन है अभी शून्य।
योद्धा हों शांतिप्रिय।
शान्ति अहिंस्र।
विध्वंस ही अभी शान्ति।
ईश्वर मिले।
मिलना नि:स्वार्थ।
लेन-देन है बहुत।
हवा हो स्वच्छ।
स्वच्छता सुवासित।
दम है बेदम।
मन हो कर्मशील।
कर्म विरत।
परिणाम में है मन।
संसद हो मंच।
मंच अन्वेषक।
अनियत है नीयत।
रास्ते हों निर्णायन।
प्रयाण निर्णायक।
ठोकरें और मोड़ हैं बहुत।
प्यार बढ़े।
भ्रातृत्व गढ़ें।
कैसी, कैसी घिनौनी घृणा!
उम्र हो महान।
महान व्रती।
भोग से है क्षुब्ध, भोग।
मृत्यु रोये।
जीवन ना खोये।
आने का निमन्त्रण बोये।
आत्मा हो मोह-ग्रस्त।
करे मानवीय-मंथन।
आत्मा है आत्म-मुग्ध।
ग्रन्थ दुहराए।
व्याख्या बुझाये।
बन रहा धर्म-ग्रन्थ।
निन्दा कुछ कहे।
कुकर्म ताकि ढहे।
निन्दा ख़ुद निन्दित।
आलोचना हो स्वस्थ।
गौरव न करे ध्वस्त।
आलोचना अभी क्रोधित।
सूरज उगे।
हर अंधकार दिखाए।
बाँट जाता है फ़क़त प्रकाश।
क्रोध का जीवन।
अनिष्ट और विध्वंस।
जितना जिये व्यर्थ।
आनन्द प्रफुल्ल।
प्रफुल्लता हो शिव
तांडव न करे पर, नृत्य।
जीवन, मृत्यु हेतु जिये।
हर पल मृत्यु न जिए।
तय है खाली आना-जाना।
दर्पण दिखाए अक्स।
अक्स छुपे न छुपाये न।
झुठलाता है बहुत।
रास्ते, मुझे चुनें।
रास्ते पर चलाये।
मेरा चुनना, चुनते रहना।
ध्वनि ख़ामोश।
अन्दर है द्वंद्व।
ख़ुद से युद्ध का उद्घोष।
अंधकार है अंधा।
ढके कुकृत्य का धंधा।
बारूद फोड़ो।
सामाजिक कर्ज़।
कर्ज़ का फ़र्ज़।
सामाजिकता बढ़े।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता - हाइकु
कविता
- अनुभूति
- अब करोगे क्या?
- अब रात बिखर ही जाने दो
- आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें
- ईश्वर तूने हमें अति कठिन दिन दिये
- उदारवादिता
- उपहार
- एक संवाद
- ऐसे न काटो यार
- कृश-कृषक
- कैसे पुरुष हो यार - एक
- गाँधी को हक़ दे दो
- जग का पागलपन
- ज्योतिपात
- डर रह गया
- तरुणाई
- तिक्त मन
- तुम्हारा शीर्षक
- पाप, पुण्य
- पीढ़ियों का संवाद पीढ़ियों से
- पुराना साल–नया वर्ष
- पेंसिल
- पैमाना, दु:ख का
- प्रजातन्त्र जारी है
- प्रार्थना
- प्रेम
- फिर से गाँव
- मनुष्य की संरचना
- महान राष्ट्र
- मेरा कल! कैसा है रे तू
- मेरी अनलिखी कविताएँ
- मैं मज़दूर हूँ
- मैं वक़्त हूँ
- यहाँ गर्भ जनता है धर्म
- शहर मेरा अपना
- शान्ति की शपथ
- शाश्वत हो हमारा गणतन्त्र दिवस
- सनातन चिंतन
- सब्ज़ीवाली औरत
- ज़िन्दगी है रुदन
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं