आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें।
तुम मेरे अस्तित्व को अपना कण दिया करो।
हम अभी लुहार की भट्टी में तप रहे हैं।
निहाई पर फिर पीटे जाएँगे।
मुझे आदमी बनना है।
मुझे मेरे वास्तविक दाम में निलामी पर चढ़ना है।
एक-एक पायदान चढ़ते हुए ज़िन्दगी से उतरना है।
आओ सूर्य तुम मेरे साथ रहो।
मेरे पूरे दिनों में मेरा नाथ रहो।
मुझे सारा पराजित-युद्ध जीतना है।
मेरे अस्तित्व को जीवित होकर बीतना है।
तुम मुझे उज्जवल रोशनी देते रहो।
तुम्हारे रोशनी का मैं हथियार गढ़ सकूँ।
तुम्हारी छवि से युक्त पताका चोटियों पर गड़ सकूँ।
आओ सूर्य तुम मेरे भाल पर चमको।
जब मैं कहूँ मेरे चेहरे पर आ धमको।
हर अंधे को रास्ता बाँट सकूँ।
भटक गयी हर राह को गाँठ सकूँ।
अपने शैशव से अपना बुढ़ापा देख सकूँ।
हर रास्ते पर तुम्हारे क़दम उकेर सकूँ।
तुम्हारी रश्मियों से हर दुःख सेंक सकूँ।
आओ सूर्य अपनी कथा और सुना व्यथा जाओ।
कहानी स्वयं के जीवन, मरण की सुना तथा जाओ।
कहते हैं तुम एक समय मर जाओगे।
सृष्टि को भी अनाथ कर जाओगे।
हाइड्रोजन को हीलियम होना बंद कर लोगे।
गुरुत्व बल से लड़ते-लड़ते साँसें चंद कर लोगे।
फटोगे गुब्बारे की भाँति और स्वयं को ध्वंस कर लोगे।
सूर्य हमारे पास आओ।
हारे हुए हमसे, जीवन की आश पाओ।
ऊर्जा ख़त्म होती है।
प्राण के कण बचे रहते हैं।
असीम प्रक्रियाओं से गुज़र, फिर शायद सूर्य बनो
या पहाड़, पत्थर।
आदमी भी या जानवर।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता - हाइकु
कविता
- अनुभूति
- अब करोगे क्या?
- अब रात बिखर ही जाने दो
- आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें
- ईश्वर तूने हमें अति कठिन दिन दिये
- उदारवादिता
- उपहार
- एक संवाद
- ऐसे न काटो यार
- कृश-कृषक
- कैसे पुरुष हो यार - एक
- गाँधी को हक़ दे दो
- जग का पागलपन
- ज्योतिपात
- डर रह गया
- तरुणाई
- तिक्त मन
- तुम्हारा शीर्षक
- पाप, पुण्य
- पीढ़ियों का संवाद पीढ़ियों से
- पुराना साल–नया वर्ष
- पेंसिल
- पैमाना, दु:ख का
- प्रजातन्त्र जारी है
- प्रार्थना
- प्रेम
- फिर से गाँव
- मनुष्य की संरचना
- महान राष्ट्र
- मेरा कल! कैसा है रे तू
- मेरी अनलिखी कविताएँ
- मैं मज़दूर हूँ
- मैं वक़्त हूँ
- यहाँ गर्भ जनता है धर्म
- शहर मेरा अपना
- शान्ति की शपथ
- शाश्वत हो हमारा गणतन्त्र दिवस
- सनातन चिंतन
- सब्ज़ीवाली औरत
- ज़िन्दगी है रुदन
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं