अरुण कुमार प्रसाद - 4
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु अरुण कुमार प्रसाद15 Mar 2021 (अंक: 177, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
1.
शांति के लिए
इतिहास का युद्ध
शांति हताश
2.
रक्त में डूबा
युद्ध का इतिहास
दर्प ज़िंदा है
3.
प्राण का नहीं
युद्ध कल्याण का हो
जियो, जीने दो
4.
अलौकिक था
रची जब गयी थी
सृष्टि का भोर
5.
खगों का प्रेम
चले जीवन भर
तलाक़ को ना
6.
लड़ते रहे
आज भी बेवजह
पति व पत्नी
7.
सागर सोचे
हिम शिखर छूएँ
माथा पटके
8.
ये आविष्कार
अभागा है बहुत
युद्ध लड़ेगा
9.
शांति के लिए
शांति सुलगाते हैं
मिलती नहीं
10.
शांति के लिए
युद्ध सुलगाते हैं
मिलती नहीं
11.
जितना जियो
रहता है अधूरा
लिप्सित लोभ
12.
कवि श्रीमान!
आशय या कथन?
योद्धा कि भाट
13.
नींद न आयी
दु:ख के कारण ही
ख़ुशी मारे भी
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता - हाइकु
कविता
- अनुभूति
- अब करोगे क्या?
- अब रात बिखर ही जाने दो
- आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें
- ईश्वर तूने हमें अति कठिन दिन दिये
- उदारवादिता
- उपहार
- एक संवाद
- ऐसे न काटो यार
- कृश-कृषक
- कैसे पुरुष हो यार - एक
- गाँधी को हक़ दे दो
- जग का पागलपन
- ज्योतिपात
- डर रह गया
- तरुणाई
- तिक्त मन
- तुम्हारा शीर्षक
- पाप, पुण्य
- पीढ़ियों का संवाद पीढ़ियों से
- पुराना साल–नया वर्ष
- पेंसिल
- पैमाना, दु:ख का
- प्रजातन्त्र जारी है
- प्रार्थना
- प्रेम
- फिर से गाँव
- मनुष्य की संरचना
- महान राष्ट्र
- मेरा कल! कैसा है रे तू
- मेरी अनलिखी कविताएँ
- मैं मज़दूर हूँ
- मैं वक़्त हूँ
- यहाँ गर्भ जनता है धर्म
- शहर मेरा अपना
- शान्ति की शपथ
- शाश्वत हो हमारा गणतन्त्र दिवस
- सनातन चिंतन
- सब्ज़ीवाली औरत
- ज़िन्दगी है रुदन
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं