महान राष्ट्र
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद1 Mar 2022 (अंक: 200, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
स्थिर हो राष्ट्र तो,
महान होने की सम्भावना तो है।
पर, होनी चाहिए प्रतिबद्धता स्थिर।
राजनीति में खण्डित मन नहीं।
और राजनीति में खण्डित मन नहीं।
महानता शब्द में आबद्ध न हो
आबद्ध हो महानता में शब्द।
संकल्प के, प्रण के और प्राण के।
राजनीति की उपलब्धि स्वतन्त्रता हो
वैयक्तिक और राष्ट्रीय।
और स्वतन्त्रता की उपलब्धि
समूहिक राजनीति।
स्वतन्त्रता अक्षुण्ण हो
यह राजनीति की उपलब्धि है और
इसकी उपलब्धता भी।
राष्ट्रवाद क्या महान राष्ट्र का कारक है?
संभवत: नहीं, अधिनायकतंत्र का अवश्य।
राष्ट्रवाद से बेहतर सर्वहितवाद है।
या प्रजावाद।
प्रजावाद में प्रजातन्त्र है सर्वोपरि।
पर, प्रजातन्त्र में व्यक्तित्व के टोले हैं।
मैं, तुम, वह के सर्वनामिक सोच भी।
राष्ट्र में आकांक्षा यदि व्यक्तिवादी हो तो
यह विद्वेष है।
विद्वेष और युद्ध का चोली दामन का साथ है।
और विजय युद्ध का ही पर्याय।
भाय, अशक्तता और अनिश्चितता का बड़वानल।
राष्ट्रगीत से राष्ट्र महान नहीं बनता।
यह अनंत को अंत में है करना सीमित।
इसे व्योम में न दें बिखरने बल्कि,
वसुधा में बदलें।
विधि-विधान की यात्रा
प्रशस्त राजपथ से उतरे।
आम सपनों के अन्तर्मन को अर्थ दे।
महान राष्ट्र आम सपनों की महानता में है निहित।
राजनैतिक धर्म और
धार्मिक राजनीति में नहीं समाहित। –
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता - हाइकु
कविता
- अनुभूति
- अब करोगे क्या?
- अब रात बिखर ही जाने दो
- आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें
- ईश्वर तूने हमें अति कठिन दिन दिये
- उदारवादिता
- उपहार
- एक संवाद
- ऐसे न काटो यार
- कृश-कृषक
- कैसे पुरुष हो यार - एक
- गाँधी को हक़ दे दो
- जग का पागलपन
- ज्योतिपात
- डर रह गया
- तरुणाई
- तिक्त मन
- तुम्हारा शीर्षक
- पाप, पुण्य
- पीढ़ियों का संवाद पीढ़ियों से
- पुराना साल–नया वर्ष
- पेंसिल
- पैमाना, दु:ख का
- प्रजातन्त्र जारी है
- प्रार्थना
- प्रेम
- फिर से गाँव
- मनुष्य की संरचना
- महान राष्ट्र
- मेरा कल! कैसा है रे तू
- मेरी अनलिखी कविताएँ
- मैं मज़दूर हूँ
- मैं वक़्त हूँ
- यहाँ गर्भ जनता है धर्म
- शहर मेरा अपना
- शान्ति की शपथ
- शाश्वत हो हमारा गणतन्त्र दिवस
- सनातन चिंतन
- सब्ज़ीवाली औरत
- ज़िन्दगी है रुदन
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं