मनुष्य की संरचना
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मनुष्य की संरचना
रचना का वरदान है।
किन्तु, प्राणी होना उसका,
उसका ही अभिशाप।
मस्तिष्क के तन्तुओं का
विशिष्ट, क्रमवार और समूहवार संचय
प्राणी के अनुक्रम में मनुष्य को
उपलब्ध होता है उच्चता।
बना देता है उस संरचना को
मनुष्य से जानवर,
संचयन की यही क्षीण क्षमता।
जीवन जीने की अनिवार्यता।
नष्ट होने के त्रास से बचाव।
करती हैं तन्तुओं की रेखाओं को निर्धारित।
फिर उसमें प्राण के विंदु प्रवाहित।
फिर करें प्राणी-समूह उन्हें परिभाषित।
अच्छे, बुरे में उद्भासित।
व्यक्तित्व का विकाश हर प्राणी का
होता है इस तरह।
कथा है कि
वरदान या अभिशाप जन्म को
बनाता है आदमी किस तरह।
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