ऐसे न काटो यार
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
दरख़्तों के साये
हमारा घर, दर और दीवार।
इसे ऐसे न काटो यार।
हमें अतीत की कथाएँ
अपने बच्चों को कहनी हैं।
हमें भविष्य की
कहानियों के
तरीक़े गढ़ने हैं।
आकाश से बादलों का पता
पूछना है,
धरती से हमारा कल।
हम पहाड़ों से
पूछेंगे उसके ऊँचे होने का
रहस्य।
हमें भी होना है ऊँचा।
गहराइयों में जो अकूत
रत्न है सागर के
कितने क़त्ल कर किए हैं हासिल।
हमें पूछना है।
हमें भी होना है उतना गहरा।
मेरा अस्तित्व तो रहने दो।
इसे ऐसे न काटो यार।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता - हाइकु
कविता
- अनुभूति
- अब करोगे क्या?
- अब रात बिखर ही जाने दो
- आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें
- ईश्वर तूने हमें अति कठिन दिन दिये
- उदारवादिता
- उपहार
- एक संवाद
- ऐसे न काटो यार
- कृश-कृषक
- कैसे पुरुष हो यार - एक
- गाँधी को हक़ दे दो
- जग का पागलपन
- ज्योतिपात
- डर रह गया
- तरुणाई
- तिक्त मन
- तुम्हारा शीर्षक
- पाप, पुण्य
- पीढ़ियों का संवाद पीढ़ियों से
- पुराना साल–नया वर्ष
- पेंसिल
- पैमाना, दु:ख का
- प्रजातन्त्र जारी है
- प्रार्थना
- प्रेम
- फिर से गाँव
- मनुष्य की संरचना
- महान राष्ट्र
- मेरा कल! कैसा है रे तू
- मेरी अनलिखी कविताएँ
- मैं मज़दूर हूँ
- मैं वक़्त हूँ
- यहाँ गर्भ जनता है धर्म
- शहर मेरा अपना
- शान्ति की शपथ
- शाश्वत हो हमारा गणतन्त्र दिवस
- सनातन चिंतन
- सब्ज़ीवाली औरत
- ज़िन्दगी है रुदन
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं