शाश्वत हो हमारा गणतन्त्र दिवस
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
शाश्वत हो हमारा गणतन्त्र दिवस।
हमें रहे बचाए सदा होने से परवश।
हमारी आकांक्षा को प्रभु का वर रहे।
स्वतंत्रताएँ सारे विश्व में अमर रहें।
प्राप्त हो गणतन्त्र को नेतृत्व श्रेष्ठ।
पारित, संचालित हो, होता हुआ ज्येष्ठ।
शब्दों की भाषा ही कर्म भी बोले।
नेतृत्व सर्वदा ही अपने को तौले।
न्याय की प्रक्रिया हो शुद्ध जीवंत।
दंड का विधान कभी न बने आतंक।
शासन में शासित की अदम्य आस्था,
बनी रहे अखंडित, प्रभु का वास्ता!
गणतन्त्र एकता, अनेकता का है।
यह विचार हो परम, देवता का है।
‘वाद’ सारे ढोंग के पर्याय हैं बने।
देखिये हैं कैसे आमने-सामने तने।
सुख मर्यादित हो स्वच्छ्न्द नहीं।
जब तक दु:खों का हो विघटन नहीं।
संसाधन साधन हो कल्याण का।
रक्षक बन खड़ा रहे सारे प्राण का।
शिक्षा ही शौर्य हो शिक्षा सौंदर्य।
शिक्षा से बढ़कर क्या कोई ऐश्वर्य!
गणतन्त्र प्रतिज्ञा हो और संकल्प।
इसके सिवा न मानो कोई विकल्प।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता - हाइकु
कविता
- अनुभूति
- अब करोगे क्या?
- अब रात बिखर ही जाने दो
- आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें
- ईश्वर तूने हमें अति कठिन दिन दिये
- उदारवादिता
- उपहार
- एक संवाद
- ऐसे न काटो यार
- कृश-कृषक
- कैसे पुरुष हो यार - एक
- गाँधी को हक़ दे दो
- जग का पागलपन
- ज्योतिपात
- डर रह गया
- तरुणाई
- तिक्त मन
- तुम्हारा शीर्षक
- पाप, पुण्य
- पीढ़ियों का संवाद पीढ़ियों से
- पुराना साल–नया वर्ष
- पेंसिल
- पैमाना, दु:ख का
- प्रजातन्त्र जारी है
- प्रार्थना
- प्रेम
- फिर से गाँव
- मनुष्य की संरचना
- महान राष्ट्र
- मेरा कल! कैसा है रे तू
- मेरी अनलिखी कविताएँ
- मैं मज़दूर हूँ
- मैं वक़्त हूँ
- यहाँ गर्भ जनता है धर्म
- शहर मेरा अपना
- शान्ति की शपथ
- शाश्वत हो हमारा गणतन्त्र दिवस
- सनातन चिंतन
- सब्ज़ीवाली औरत
- ज़िन्दगी है रुदन
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं