आईना देखा करो
काव्य साहित्य | कविता अंजना वर्मा1 Jan 2021
मैंने आईना देख कर
अपने को कितना सजाया-सँवारा है
आत्मा तक
यह मत कहो
कि आईना देखना बुरा है
या बनना-सँवरना
आत्मरति है
यह मानो
कि किसी और के सजने -सँवरने से
फ़र्क़ तुम्हारी ज़िंदगी में भी पड़ता है
तुम भी सुंदर बनने का
प्रयास करते हो
अखरते सत्य को
शिवम् के पथ से
सुंदरम् की ओर ले चलना ही
मंज़िल की राह है
इसीलिए
हर दिन आईना देखा करो
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