आईना देखा करो
काव्य साहित्य | कविता अंजना वर्मा1 Jan 2021 (अंक: 172, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
मैंने आईना देख कर
अपने को कितना सजाया-सँवारा है
आत्मा तक
यह मत कहो
कि आईना देखना बुरा है
या बनना-सँवरना
आत्मरति है
यह मानो
कि किसी और के सजने -सँवरने से
फ़र्क़ तुम्हारी ज़िंदगी में भी पड़ता है
तुम भी सुंदर बनने का
प्रयास करते हो
अखरते सत्य को
शिवम् के पथ से
सुंदरम् की ओर ले चलना ही
मंज़िल की राह है
इसीलिए
हर दिन आईना देखा करो
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
गीत-नवगीत
किशोर साहित्य कविता
रचना समीक्षा
ग़ज़ल
कहानी
चिन्तन
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं