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बरसों पहले

बरसों पहले एक युवा हृदय में
एक ओर, कुछ कर गुज़रने की
अदम्भ चाह और उत्साह था
और दूसरी ओर,
भावनाओं के ज्वार के साथ साथ था,
आत्मविश्वास का नितांत अभाव तथा
अनजान भविष्य के प्रति आशंकायें।

 

ऐसा भी सुना था कि, कभी-कभी,
असंभव भी संभव हो जाया करते हैं
कि, मानव के स्पर्शमात्र से
पत्थर भी जीवन धारण करते हैं।
कि, पारस के स्पर्शमात्र से
लौह भी स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता है।
सुना तो था, पर विश्वास नहीं था।

 

आज, बरसों के पश्चात्‌
ऐसा प्रतीत होता है कि
इस जगत में सब सम्भव है।
विगत के कुछ वर्षों के अनुभव ने
यह सिद्ध कर दिया है कि
मनुष्य के जीवन में जहाँ एक और विधि है,
वहीं दूजी ओर अमृत भी।

मानवीय सम्बन्धों की पारस मणि
स्पर्श हो, पत्थर भी सोना बन जाता है,
शूल भी फूल बन जाते हैं
तभी तो यह सम्भव हुआ कि
उस आशंकित दुर्बल हृदय व्यक्ति के
पग पग पर आते शूल
फूल में परिवiर्तत होते गये,
आत्मविश्वास, क्रमश: बढ़ता गया,
सारी आशंकायें निर्मूल सिद्ध हुईं
जिसके पारसमय स्पर्श से
यह परिवर्तन सम्भव हुआ,
उसी को समर्पित है -
ये सारे उद्‍गार - सुमन!

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