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भावना

ऐसे तो मोबाइल में छुपाने जैसा कुछ भी नहीं था लेकिन शादी के दूसरे-तीसरे ही दिन से ही नेहा ने नोटिस किया कि उनके पति कभी चोरी-चुपके से तो कभी सामने, उसका मोबाइल हाथ में लेते हैं, उसका पासवर्ड खोलने के लिए उसका मुँह निहारते हैं। नेहा का मन यही सोचकर बैठ जाता कि सामने वाले को अपनी पत्नी पर कोई भरोसा नहीं है। 

एक दिन की बात है, नेहा अपने पति के हाथ से दो बार बड़ी ही चालाकी से मोबाइल छीन चुकी थी, तीसरी बार बोल पड़ी, "मैं हाथ जोड़ती हूँ, मेरा मोबाइल मत लीजिए।"

नेहा के चेहरे पर एक घमण्ड जैसा कुछ उभर आया था और विकास के चेहरे पर कुछ शर्मिंदगी जैसा। नेहा को अपनी सहेली बबीता की बातों का स्मरण हो आया कि “मर्द बड़े शक्की होते हैं, पहले तो मोबाइल लेंगे, सर्च करेंगे और ऐसा-वैसा शक होने पर हंगामा खड़ा कर देंगे।"

नेहा ने धीरे से एक आँख खोलकर देखा कि विनय अब भी मोबाइल हाथ में लिए हुए है, और घड़ी में चार बज रहे हैं। नेहा ने कहा, “हर कोई एक जैसा नहीं होता है, मेरा मोबाइल चेक करने की ज़िद करेंगे तो बड़ा पछताएँगे।" विनय ने मोबाइल नेहा के हाथ में देकर उसके गाल को छुआ और एक तरफ़ होकर सोने की चेष्टा करने लगा, पत्नी के रूप में पहले प्यार को वो खोना नहीं चाहता था।

शाम के समय ससुर जी की ज़ोरों की आवाज सुनकर नेहा ने पर्दे से झाँका तो देखा कि विकास को डाँटते हुए कह रहे हैं, "आवारा कहीं का! आजतक एक मोबाइल नहीं ख़रीद सका। सिर्फ़ गाना सुनने का शौक़ पालकर रखा है। तुमसे कितनी बार कहा है कि मेरा मोबाइल मत छूना।" विकास का बड़ा भाई भी हाँ में हाँ मिला रहा था। विकास वहाँ से निकल रहा था अपना सा मुँह बनाए, नज़र मिलते ही विकास झूठा सा मुस्कुराया।

नेहा बिस्तर पर शांत और उदास लेटे पतिदेव को मोबाइल देने की कोशीश करने लगी। विकास की अश्रुघारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी और नेहा की आँखों में पश्चाताप के आँसू तैर गए।

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