किरदार
काव्य साहित्य | कविता अजय अमिताभ 'सुमन'1 Nov 2019
क्या ख़बर भी छप सकती है,
फिर तेरे अख़बार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
अति विशाल हैं वाहन जिसके,
रहते राज निवासों में,
मृदु काया सुंदर आनन पर,
आकर्षित लिबासों में।
ऐसों को सुन कर भी क्या,
ना सुंदरता विचार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
रोज़ रोज़ का धर्म युद्ध,
मंदिर मस्जिद की भीषण चर्चा,
वोही भिन्डी से परेशानी,
वोही प्याज़ का बढ़ता ख़र्चा।
जंग छिड़ी जो महँगाई से,
अब तक है व्यवहार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
कुछ की बात बड़ी अच्छी,
बेशक पर इसपे चलते क्या,
माना कि उपदेश बड़े हैं,
पर कहते जो करते क्या?
इनको सुनकर प्राप्त हमें क्या,
ना परिवर्तन आचार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
सम सामयिक होना भी एक,
व्यक्ति को आवश्यक है,
पर जिस ज्ञान से उन्नति हो,
बौद्धिक मात्र निरर्थक है।
नित अध्ययन रत होकर भी,
है अवनति संस्कार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
क्या ख़बर भी छप सकती है,
फिर तेरे अख़बार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आख़िर कब तक आओगे?
- ईक्षण
- एकलव्य
- किरदार
- कैसे कोई जान रहा?
- क्या हूँ मैं?
- क्यों नर ऐसे होते हैं?
- चाणक्य जभी पूजित होंगे
- चिंगारी से जला नहीं जो
- चीर हरण
- जग में है संन्यास वहीं
- जुगनू जुगनू मिला मिलाकर बरगद पे चमकाता कौन
- देख अब सरकार में
- पौधों में रख आता कौन?
- बेईमानों के नमक का, क़र्ज़ा बहुत था भारी
- मन इच्छुक होता वनवासी
- मरघट वासी
- मानव स्वभाव
- मार्ग एक ही सही नहीं है
- मुझको हिंदुस्तान दिखता है
- मृत शेष
- रावण रण में फिर क्या होगा
- राष्ट्र का नेता कैसा हो?
- राह प्रभु की
- लकड़बग्घे
- शांति की आवाज़
- शोहरत की दौड़ में
- संबोधि के क्षण
- हौले कविता मैं गढ़ता हूँ
- क़लमकार को दुर्योधन में पाप नज़र ही आयेंगे
- फ़ुटपाथ पर रहने वाला
कहानी
सांस्कृतिक कथा
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
नज़्म
किशोर साहित्य कहानी
कथा साहित्य
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं