तुम बिन कौन उबारे
काव्य साहित्य | कविता सुषमा दीक्षित शुक्ला15 Aug 2020
थोड़ी सी मुस्कान कन्हैया,
जग को दे दो प्यारे।
हर कोई है व्यथित यहाँ तो,
अपने दुख से हारे।
इस धरती पर आकर ख़ुद,
तुमने भी दुख क्रूर सहे।
कारागृह में जन्म लिया,
निज मात-पिता से दूर रहे।
नंद यशोदा के लाला बन,
ग्वाल बाल संग मेल किया।
गोपी गइया मोर मुरलिया,
इन सब के संग खेल किया।
राधा के कान्हा तुमने,
अमर प्रेम इतिहास किया।
नंद यशोदा के लाला बन
रक्त नात को मात दिया।
मैत्री का इतिहास रचाया,
दीन सुदामा मीत बनाकर।
उनके दुख दारिद्र्य मिटाया,
अद्भुत प्रेम निछावर देकर।
दुष्ट कंस पापी को मारा,
सब की सघन सुरक्षा की।
गोवर्धन पर्वत करे धारण,
शरणागत की रक्षा की।
दुष्ट दैत्य पूतना बकासुर
एक एक कर सब मारे।
अब दुखों का नाम मिटा दो,
राधा जी के तुम प्यारे।
बने सारथी जब अर्जुन के,
कर्म योग संदेश दिया।
स्वयं जटिल जीवन जीकर भी,
गीता का उपदेश दिया।
तड़प उठी मानवता अब,
ये केवल तुम्हें पुकारे।
तुम बिन मेरे कान्हा,
अब ये नइया कौन उबारे।
थोड़ी सी मुस्कान कन्हैया,
जग को दे दो प्यारे।
हर कोई है व्यथित यहाँ तो,
अपने दुख से हारे।
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