तू ना झूलेगा झूलों में
काव्य साहित्य | कविता अंजना वर्मा1 Dec 2020
(लोरी)
तू ना झूलेगा झूलों में,
ना झूलेगा पलनों में।
तू मेरा अनमोल रतन है,
झूलेगा तू नैनों में।
मृगछौने -सी काली आँखें
निंदिया जिनमें रहती है।
ना जाने अनदेखी परियाँ
क्या-क्या तुझसे कहती हैं?
मुँह में दूध लिए मुस्काता
है तू कैसे सपनों में !
इतने कोमल गाल हैं तेरे
रेशम रुखड़ा लगता है।
तू तो बेटा सचमुच ही
चंदा का टुकड़ा लगता है।
सौ सालों की उमर मैं माँगूँ
सारी ख़ुशियाँ क़दमों में।
('पलकों में निंदिया' लोरी-संग्रह से)
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