अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

विराग

मत विराग की बात करो, मत कहो कि जग निस्सार है।
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥


प्रातः की अरुणिम आभा, आशा सन्देश सुनाती है ,
निज उर्जा और ज्योति से, सबमें नवशक्ति जगाती है।
ताराओं से जगमग हो, रजनी का रूप अपार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥


यथासमय पर ऋतुएँ अपना रूप बदल कर आती हैं,
हर मौसम फल-फूल सुहाने सबको भेंट चढ़ाती हैं।
नित नूतन सौंदर्य प्रकृति में नित ही नई बहार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥


शीष उठाये पर्वत कितने विस्तृत और महान हैं,
सरिताओं की छल-छल ध्वनि मानों करती सहगान है।
झर-झर करता निर्झर मानो पायल की झंकार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥


माँ के आँचल की छाया में हँसता रहता है बचपन ,
गीत ख़ुशी के गाया करता सपनों में खोया यौवन।
मादकता-आतुरता से पूरित प्रिय की पुकार है, 
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥


उर के तारों को झंकृत कर दें ऐसे गीत विरल, पर हैं,
सुख-दुख में जो काम आयें ऐसे मीत विरल, पर हैं।
ऐसे ही नातों के बल, धरती सहती सब भार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

स्मृति लेख

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

साहित्यिक आलेख

कार्यक्रम रिपोर्ट

कविता - हाइकु

गीत-नवगीत

व्यक्ति चित्र

बच्चों के मुख से

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं