पहिया
काव्य साहित्य | कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
पहिया जब घूमता है तो,
धुरी के अधीन हो जाता है।
घूमता है पर प्रवाह से
बदलता है पर बहाव से
रुकता है पर बदलाव से।
विराम लेने पर, अनेकों बार
प्रवाह, बहाव और बदलाव से
तोप दिया जाता है, बुराई को
रोक दिया जाता है, अच्छाई को।
तोपी हुए बुराई से,
सत्य मिटता नहीं, दब जाता है,
परन्तु खोदने पर,
कई परतों से दिख जाता है।
सुगंध से प्रचुर होता है,
बयार में ज़रूर होता है।
हँसता है मुस्कुराता है
अच्छाई से प्रेरित और
मानवता से अवतरित होता है
अच्छाई समाज को चुभती है।
पर अवसादों से डूबती नहीं है
मरती नहीं है, डरती नहीं है
मायूस होकर टूटती नहीं है।
मूर्छा खाकर गिरती है परन्तु
सत्य की संजीवनी से
लक्ष्मण रूप धारण करती है॥
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