चिंगारी
काव्य साहित्य | कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी15 Feb 2021 (अंक: 175, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
क्षितिज धूमिल सा दिखा
धुआँ उठा होगा कहीं
धधकती प्रचण्ड ज्वाला।
चिंगारी लगी होगी कहीं॥
लपट जो फैली हुई है
दिल के कोने का धुआँ
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उमड़े।
चिंगारी लगी होगी कहीं॥
एक से आरम्भ होकर
धुँए सा प्रसार इसका
विद्रोह की लपटें हैं फैली।
चिंगारी लगी होगी कहीं॥
तोड़ दीं लगाम ख़ुद से
एकजुट हुँकार भरकर
ललकार है निर्भीक की।
चिंगारी लगी होगी कहीं॥
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठकर
विरोध कर रहा डटकर
सहम गए ज़ालिम हुक्मरान।
चिंगारी लगी होगी कहीं॥
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