अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मरहूम गर तू है

जहान में नंगा आया था
ग़रीबी साथ लाया था
ख़ुशी के अपने भावों से
सभी को तूने हँसाया था॥

ख़ुदा ने कान बख़्शा है
नेकी सुनने और करने को
मगर क्या खूब फ़ितरत है
बुराई सुनने, करने को॥ 

नज़र ख़ुदा ने बख़्शी है
जहान ढूँढ़ ले प्यारे
ख़ुदा को क्यों करे नाख़ुश
अज़ाब थूक दे प्यारे॥ 

कोई अपने, पराये न थे
सभी के दिल का तारा था
किया ऐसा भी क्या तुमने
कोई पराया तो कोई अपना॥ 

मरहूम गर तू है
जीना और मरना क्यों?
बुज़दिली से ज़िन्दगी में
तबाह करना ही क्यों है? 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

1984 का पंजाब
|

शाम ढले अक्सर ज़ुल्म के साये को छत से उतरते…

 हम उठे तो जग उठा
|

हम उठे तो जग उठा, सो गए तो रात है, लगता…

अंगारे गीले राख से
|

वो जो बिछे थे हर तरफ़  काँटे मिरी राहों…

अच्छा लगा
|

तेरा ज़िंदगी में आना, अच्छा लगा  हँसना,…

टिप्पणियाँ

Viphai 2019/04/17 04:27 PM

Nice!

Vaishali Chaudhary 2019/04/02 03:10 PM

Gajabbbbb... Keep it up!

Mehtab Alam 2019/04/02 08:25 AM

Masallah. Kabile tareef

Mehtab Alam 2019/04/02 07:43 AM

Masallah Bahut hi umda

Rashmi Agrahari 2019/04/02 05:47 AM

Kabil e tareef... Naye lekhak ke roop me aage jate hue Zahir Ali Siddique..well done

Shivangi 2019/04/02 04:07 AM

Waaah ..kamaal h

Ashok Kumar Chaudhary 2019/04/02 03:49 AM

Very nice.

Kaustubh 2019/04/02 01:59 AM

Apratim Rachana Zahir bhai

Rajneesh shukla 2019/04/01 06:58 PM

Waah waah kya rachna h...zahir saheb

Rohan 2019/04/01 06:58 PM

Kay baat hai!

Rajneesh shukla 2019/04/01 06:56 PM

Bahut badiyan zahir saheb

Sandip todakr 2019/04/01 05:38 PM

Nice.

Himanshu 2019/04/01 05:21 PM

Kya bat hai

Vandana Shukla 2019/04/01 05:09 PM

Good one

Dattatray A. Pethsangave 2019/04/01 04:53 PM

Very nice poem

Sandeep kumar verma 2019/04/01 04:31 PM

Good zahir bhai.....

Amit Mishra 2019/04/01 04:10 PM

बहुत खुब भाई जी।

Ehtesham Khan 2019/04/01 04:07 PM

Beautiful lines

Raveena Chaurasia 2019/04/01 03:47 PM

Awesome poem...with a beautiful message to convey...

Siddharth mohan 2019/04/01 03:42 PM

बहुत सुंदर पँक्तियाँ

Anwar Ali 2019/04/01 03:32 PM

Bahut khoob bhaiya

Shaimah khan 2019/04/01 03:21 PM

Good work!!!

Suryapratap 2019/04/01 03:15 PM

Bahot khub

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

सामाजिक आलेख

नज़्म

लघुकथा

कविता - हाइकु

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं