ख़ुशियों भरा...
काव्य साहित्य | कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
महलों से खपरैल सही गर
खुल के वहाँ हम हँस पायें
नींद की गोली दूर रहे
भले धूल तले दब जायें॥
बेशक कपड़े फटे पुराने
विश्वास नवाबी हो जाये
रात खुले आकाश के नीचे
मिथ्या से दूरी बन जाये॥
नहीं ज़रूरत ऐसे धन की
चिंता भी चिता बन जाये
पनपे राज सन्तुष्टि का ऐसा
ख़ुशियों भरा जीवन जी पाये॥
ईर्ष्या ना हो दौर-ए जहां में
आपस में प्रेम बढ़ जाये
दीन धरम में हो तब्दीली
मानवता प्रथम बन जाये॥
ग़ायब भेद अमीर ग़रीब का
समता का विचार जग जाये
नस्ल भेद का नाश धरा से
ईश्वर की संतान बन जायें॥
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