जहुआ पेड़
काव्य साहित्य | कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी1 Sep 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
कभी अनाज ओसाते वक़्त
किसान के हाथ से छिटक
धरती की गोद जा समाया
तो कभी परिंदों के बीट से
झोपड़ी और दरख़्तों पर
जन्मस्थल बनाया
तो कभी नदी, समन्दर में
बिन हारे, लहरों के सहारे
घास-फूस पर जा लगा
माटी में समाने से लेकर
खपरैल और झोंपड़ी
दरख़्त और घास-फूस
यही है उद्गम की कहानी
अंकुरण के जिज्ञासु नयन
अनन्त नभ को निहार रहे
उड़ान के लिए...
सपनों में जान के लिए
अनगिनत बार सँभाला
झंझावत से, बवंडर से
पर अंकुरण के बाद,
वीरान भी हुई कई बार
आबो हवा से मुहब्बत
जिजीविषा की ताकत
हर बार नई सुबह दी
हवा के झोंको से
कब बेखौफ़ हो गया
नन्हे, कोमल पौधे से
कब फलदार हुआ
पता ही नही चला
फल लदने पर झुककर
विनम्रता का दूत बना
दरख्तों का विस्तार कर
मुसाफ़िर को राहत पहुँचाया
दुःखी हूँ, आहत हूँ...
दोहरे बर्ताव से मूर्छित भी हूँ
"जहुआ पेड़" कहकर
बुलाता जो है।
1.जहुआ=नाजायज़
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आँसू
- आत्माएँ भी मरती हैं . . .
- उजाले में अँधेरा . . .
- उड़ान भरना चाहता हूँ
- ए लहर! लहर तू रहती है
- एक बेज़ुबां बच्ची
- कौन हूँ?
- गणतंत्र
- चिंगारी
- चुगली कहूँ
- जहुआ पेड़
- तज़ुर्बे का पुल
- दीवाना
- नज़रें
- पत्रकार हूँ परन्तु
- परिंदा कहेगा
- पहिया
- मरा बहुरूपिया हूँ...
- मैं पुतला हूँ...
- लौहपथगामिनी का आत्ममंथन
- विडम्बना
- विषरहित
- सड़क और राही
- हर गीत में
- ख़ुशियों भरा...
- ग़म एक गम है जो...
हास्य-व्यंग्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सामाजिक आलेख
नज़्म
लघुकथा
कविता - हाइकु
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
shaily 2022/11/05 10:32 AM
वाह क्या खूब