विषरहित
काव्य साहित्य | कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
विष का प्याला घूँट 'शिवा'
विषरहित धरा के अरमां से
विष रहित नहींं हुआ समाज
उल्टे मन ही हो चला विषाक्त।
इस विष से मृत्यु नहींं होती
आत्मा मनुष्य की मर जाती
विष उपज अन्न मेंं मिल जाता
विषाक्त धरा को कर जाता।
विष यदि उपजे इस आत्मा मेंं
दूषित समाज हो जाता है
विषपान करे यदि एक मनुज
घर घर में फैल बिखर जाता।
विष दूर करो शिव के माफ़िक
ताकि समाज विषरहित बने
उस पान का क्या औचित्य भला
मानव सेवा जिससे वंचित॥
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