पत्रकार हूँ परन्तु
काव्य साहित्य | कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
भूल जाता हूँ स्तम्भ को
जिसका हिस्सा हूँ
पहिया घूमता तो है पर
पारदर्शिता के सिद्धान्त,
निष्पक्षता के धुरी और
सत्यता के पृष्ठभूमि में
हिफ़ाज़त करता है
सबसे बड़े लोकतंत्र की
लेकिन मैं इसके परे
सत्ता पक्ष की धुरी पर
घूमता हूँ मानो
सत्ता पक्ष के साँप ने
फुफकार मार दी हो
निष्पक्ष की खिल्लियाँ
सत्य की गिल्लियाँ
बेशर्मी से उड़ा रहा हूँ।।
बार बार भूल जाता हूँ
समाज की निगाह को
जो निगरानी करती है
इंसाफ़ दिलाकर
इंसानियत जीवित रखती है॥
परन्तु आज तो
समाचार की जगह
विचार थोप रहा हूँ
न्यायालय का रूप ले रहा हूँ
समृद्ध विचारों को छीन
निर्धन विचारों के अधीन
विनाश का साया लिए
भस्मासुर का स्थान ले रहा हूँ॥
पत्रकार हूँ परन्तु
आयामों से दूर खड़ा
वाहवाही की ताल और
चाटुकारिता की धुन से
बैताला हो चुका हूँ
अज्ञानता के भँवर में
काली करतूतों का
हवाला बन चुका हूँ॥
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