पहली दफ़ा
शायरी | नज़्म ज़हीर अली सिद्दीक़ी15 Apr 2019
मज़हबी इमारतें
रात के सन्नाटे में मशग़ूल!
अजीब बहस...
इंसानियत बग़ैर इंसान
हैरान रह गया सुनकर
इंसानियत की टोकरी
जो मेरे सिर पर थी - देखा तो
इंसानों के जगह हैवान दिखे
पहली दफ़ा…
इंसानियत से दूर अलग दहलीज़॥
इमारतों के फटकार से
रूह की दुत्कार से
शर्मिंदा लेकिन ज़िंदा
दबे पाँव भागना चाहा पर
ख़ुदा को कहाँ पसंद
इमारत की ईंट से टकराया
हँसी के ठहाके का अहसास
देखा तो रूह
पहली दफ़ा…
मेरी तौहीन रूह के हँसने का सबब॥
बेशर्मी का आलम देखिये
झूठी तस्सली देकर
मय्यत निकाली ज़मीर की
फ़ख़्र के साथ...
रूह से ऐसे अलग हुआ
मानो तलाक़ की अर्ज़ी क़बूल हुई
ऐसा ख़ुशमिज़ाज था मानो
परवरदिगार ने सारी
ख़ता बख़्श दी हो
पहली दफ़ा…
अपनी मय्यत का जनाज़ा पढ़ रहा था॥
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टिप्पणियाँ
Kaustubh 2019/04/20 01:29 PM
Aapke Alphas sadaiv isprakar dahityaprachar kare yehi eshar se kamana karate hai
Sushil 2019/04/20 01:07 PM
बहुत सुंदर लिखावट है आपकी
Sandip 2019/04/19 08:10 AM
Niceee
Atul 2019/04/18 07:14 PM
Superb
Tejas Vilas Shirore 2019/04/18 05:05 PM
Waah bhai waah!!
Suvidha Shinde 2019/04/18 04:56 AM
Very nice
Praveen upadhyay 2019/04/18 03:17 AM
Adbhut, sarahneey kary
Ramsuresh 2019/04/18 02:10 AM
Nice kavi ji
Viki 2019/04/17 06:56 PM
Hairaan reh gaya sunkar
Viphai 2019/04/17 04:27 PM
Marmik rachna
Viphai 2019/04/17 04:20 PM
Good!!!
Rahul 2019/04/17 02:51 PM
Ohh woww wt a growth man..
Sulochana 2019/04/17 08:54 AM
Very nice
Saisha Revankar 2019/04/17 06:57 AM
Very elegantly written. Loved it.. !!!!
Mehtab Alam 2019/04/17 05:07 AM
Kabile tareef
Swati korgaonkar 2019/04/17 03:03 AM
Nice one sir
Rajesh Kumar 2019/04/16 07:14 PM
Wonderful bhai..... Continue writing we need more poems like this.
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SHAKTI PRAKASH 2019/05/26 10:16 AM
अतिसुन्दर रचना मुझे ऐसे मित्र पर गर्व है। धन्यवाद