एक बेज़ुबां बच्ची
काव्य साहित्य | कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी15 Aug 2019
ज्ञानदाता के भाँति,
व्यस्त था ज्ञान वितरण में
पैसे से पुस्तक, पर ज्ञान नहीं...
बिस्तर, पर नींद नहीं...
पानी, पर प्यास नहीं...
भोजन, पर भूख नहीं...
ज़ुबां पर लगाम
बेज़ुबां - फिर भी आभाष...
एक विरोधाभास
किताब, क़लम,बस्ता लिए
मानो कहना चाह रही हो
हूँ अछूती विद्या-मंदिर प्रवेश को
कहीं प्रवेश शुल्क तो
कहीं अभिभावक की अर्हता
मेरे हिस्से में...
महज़ अयोग्यता है
दीन-हीन पुरखों का
कठिन परिश्रम चिंघाड़ रहा
खड़ी अयोग्यता मुँह बाये
संघर्ष को गले लगाना तुम...
कठिन डगर...पग पग पर काँटा...
भूख, प्यास मन को डाँटा
एक बेज़ुबां बच्ची...
मलिन बस्ती से उठकर,
गगनचुम्बी महलों में
आशियाना बनाने को आतुर॥
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