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क़ाबिलियत

चकोर जी पिछले दिनों एक कुत्ता ले आए। यूँ तो उन्हें कुत्तों से कोई ख़ास लगाव नहीं था लेकिन इधर अपनी बेवज़ह भौंकने की आदत के कारण वे धीरे-धीरे बिलकुल अकेले रह गए थे। ऊपर से कोरोना की वज़ह से वे अब पान-बीड़ी के खोखे वालों के पास उनसे माँगी सुपारी चबाने का आनंद भी खो बैठे थे। ख़ैर, ईश्वर की कृपा से उनके एक परिचित अपना कुत्ता किसी को देना चाह रहे थे। आदत से मुफ़्त का चंदन घिसने वाले चकोर जी उस कुत्ते को ले आए।

आजकल उनका समय आनंद से बीत रहा है। वे जब भी तबीयत करती है, अपने इस कुत्ते को ख़ुद भौंक कर भौंकने के लिए उकसाते हैं। फिर कुछ देर वे और उनका कुत्ता दोनों मिलकर भौंकते हैं। उनके कुत्ते को भी इस प्रक्रिया में बहुत आनंद मिलता है। अपनी बिरादरी की बढ़ोतरी में कुत्तों का ख़ुश होना स्वाभाविक है। एक बात और! कुत्ता तो आदमी बनने से रहा; ख़ुदा ने यह क़ाबिलियत सिर्फ़ आदमी को बख़्शी है कि वह कुत्ता, गधा, सुअर, उल्लू, बैल, साँप आदि जो चाहे बन सकता है। 

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