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राम की शबरी

इसे एक बहुत बड़ा संयोग समझिए अन्यथा ऐसा कैसे हुआ कि उनका नाम रामेश्वर है और उनके घर कोरोना संक्रमण से पहले वर्षों से जो काम वाली आती रही, उसका नाम शबरी है। ख़ैर,जो कुछ घटित हुआ, वैसा होना भी एक असाधारण बात कही जाएगी। दरअसल, पिछले महीने साठ वर्षीय रामेश्वर जी की नब्बे वर्षीया माता जी का निधन हुआ तो उन्होंने तय किया कि माता जी के नाम से पास के शिव मंदिर के अहाते में एक कमरा बनवा देंगे। इसके लिए उन्होंने एक लाख रुपये की राशि बैंक से निकाल कर अपने पास रख ली थी। उनका विचार था कि वे माता जी की तेरहवीं के बाद मंदिर समिति को अपने इस निर्णय की सूचना देंगे।

ख़ैर, इधर जैसे ही उनकी माता जी की तेरहवीं संपन्न हुई, उन्हें पता चला कि शबरी का सोलह वर्षीय इकलौता बेटा अरुण कोरोना से संक्रमित हो गया है।  उन्होंने शबरी से संपर्क साधा और जब उसने दबी ज़ुबान से मदद की गुहार लगाई तो रामेश्वर जी ने उसे पास के एक अस्पताल में बेटे को भर्ती करने की सलाह दी। फिर रामेश्वर जी ने उस अस्पताल से संपर्क किया और उनको बताया कि शबरी के बेटे के इलाज का खर्च वे उठाएँगे। 

रामेश्वर जी कल बहुत ख़ुश हुए जब उन्हें उनकी पत्नी ने यह ख़बर दी कि शबरी का बेटा अब घर आ गया है।

रामेश्वर जी सोच रहे थे कि कमरा तो बाद में भी बनवा सकते हैं लेकिन अरुण का इलाज करवाना ज़्यादा ज़रूरी था।

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टिप्पणियाँ

डॉ पदमावती 2021/05/15 03:00 PM

जी बिलकुल सही । आज भी धरती ऐसी पुण्यात्माओं से ख़ाली नहीं हुई है । बहुत सुंदर । बधाई आपको

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