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अहसास

दीवाली की सफ़ाई में रुना व्यस्त थी, उम्र अपना रंग दिखा रही थी, जल्दी थक जाती थी। अलमारी साफ़ करते-करते छुपाकर रखी डायरी गिरी, आसपास देखते हुए खोला तो एक लाल गुलाब सूखा सा गिर पड़ा। उँगलियाँ फिर उस प्यारे से अमन के खख़्त को सहलाने लगीं और आँखें फिर अनगिनत बार पढ़े ख़त को पढ़ते हुए अतीत में विचरण करने लगीं।

ऑफ़िस में पहला दिन था रुना शर्मा का। बॉस की नई सेक्रेटरी है। दूसरे दिन से पूरा स्टाफ़ क़रीब पंद्रह लोग उसको लुभाने में लगे थे, उनमें अमन भी था। अमन तो पहली नज़र से ही दीवाना हो चुका था। स्वाभाविक है कि ख़ूबसूरती को सब अंदाज़ रहता है, कौन कौन उस पर डोरे डालने को बेताब है।

ऑफ़िस से निकलते ही एक दिन धुआँधार बारिश में रुना शर्मा पकड़ी गई। चार्टर्ड बस से जाना था, देर हो गयी, बस निकल चुकी थी। तुरंत अमन ने वक़्त की नब्ज पकड़ी, थोड़ी बारिश रुकी और रुना को बाइक पर बैठने को कहा, "आइये, कहाँ छोड़ना है, बैठ जाइए।"

और दो पंछी उड़ चले, धीरे-धीरे ये रोज़ का नियम बन गया। परिचय से कुछ अधिक एक दूसरे को जानने लगे।

वो समय मोबाइल का नहीं था, दिल की हसरतों को लेखनी ही ख़तों में सजाती थी। लंच के समय रुना के पर्स में अमन ने इक महकता पैग़ाम रखा।

उसी दिन ऑफ़िस में किसी कलीग का फ़ेयरवेल था। फ़ंक्शन में बॉस ने रुना को गाना सुनाने कहा , और वो शुरू हो गयी—इक अहसास है ये दूर से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।

घर आकर देखा एक गुलाबी लिफ़ाफ़ा उसके पर्स में से झाँक रहा है। जल्दी से कमरे का दरवाज़ा बंद करके लिफ़ाफ़ा खोला, एक छोटा सा लाल गुलाब गिर पड़ा और वो ख़त पढ़ने लगी, "एक बार तुम्हारे नैनों की गहरी झील के कमल चुनना चाहता हूँ। गुलाबी गालों को मोर पंख की छुअन का अहसास कराना चाहता हूँ। मखमली हाथों से थोड़ी सी नरमता चुरानी है मुझको। मेरा रूममेट अपने घर गया है, प्लीज़ कल हम पूरा दिन साथ बिताएँगे; आओगी न, मिलोगी न।"

और रात भर रुना रोमानियत में खोई रही।

इत्तिफ़ाक़ ऐसा हुआ, दूसरे ही दिन पता चला, अमन के बाबा नहीं रहे, इसलिए वो अपने गाँव गया है। 

कुछ दिन बाद रुना की सरकारी नौकरी लग गयी और वो पुराना ऑफ़िस छोड़ गई।

समय पंख लगाकर उड़ता रहा, आज रुना दो बड़े बच्चों की माँ भी है, पर उसके होंठों पर आज भी ये गाना रहता  है—किसी नज़र को तेरा इंतेज़ार आज भी है!
 

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